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यह पुस्तक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तथा उनके निकट सहयोगी सृजन पाल सिंह के प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में टिकाऊ विकास प्रणाली के विकास तथा क्रियान्वयन के ऐसे प्रमाण दिए गए हैं, जिनमें अलग परिस्थितियों में भिन्न रणनीतियाँ अपनाई गईं। यह पुस्तक वर्तमान मानव सभ्यता की चुनौतियों तथा अवसरों को समाहित करती है और दरशाती है कि किस प्रकार से विश्व के ग्रामीण लोगों की क्षमताओं के इस्तेमाल से सावधानीपूर्वक पुरा (PURA—Provision of Urban Amenities in Rural Areas) की टिकाऊ विकास प्रणाली को तैयार किया जा सकता है।
इसमें भारतीय अनुभवों को ही नमूने के तौर पर इस्तेमाल किया गया है तथा मौजूदा उदाहरणों का हवाला देकर दिखाया गया है कि किस तरह से सीमित समय में पुरा प्रणालियों के जरिए सामाजिक परिवर्तन लागू किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि विकास का पुरा मॉडल अब केंद्र तथा राज्य सरकारों समेत कई निजी एवं शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा लागू किया जा रहा है। पुरा का प्रसार विश्व के अन्य भागों में भी किया जा रहा है और अमेरिका तथा अफ्रीका के इलाकों के लिए विशिष्ट योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
पुस्तक में इस बात पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है कि किस तरह से विभिन्न साझेदार—सरकार, निजी क्षेत्र और समुदाय—आपस में मिलकर सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में काम करते हुए खुशहाल व समृद्ध विश्व के स्वप्न को साकार किया जा सकता है।
सृजन पाल सिंह को भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी के रूप में स्वर्णपदक प्रदान किया गया। वे छात्र परिषद् के प्रमुख भी रहे। वर्तमान में वे पुरा (PURA) को टिकाऊ विकास प्रणाली के रूप में विकसित करने के लिए डॉ. कलाम के साथ कार्य कर रहे हैं।
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डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (15.10.1931-27.7.2015) भारत के यशस्वी वैज्ञानिकों में से एक तथा उपग्रह प्रक्षेपण यान और रणनीतिक मिसाइलों के स्वदेशी विकास के वास्तुकार थे। एस.एल.वी.-3, ‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ उनकी नेतृत्व-क्षमता के प्रमाण हैं। उनके अथक प्रयासों से भारत रक्षा तथा वायु-आकाश प्रणालियों में आत्मनिर्भर बना। अन्ना विश्वविद्यालय में प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक रूपांतरण के प्रोफेसर के रूप में उन्होंने विद्यार्थियों से विचारों का आदान-प्रदान किया और उन्हें एक विकसित भारत का स्वप्न दिया। अनेक पुरस्कार-सम्मानों के साथ उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से भी सम्मानित किया गया। विज्ञान-प्रसार में योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित ‘किंग चार्ल्स-ढ्ढढ्ढ’ मेडल से सम्मानित किया गया। भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान देश भर के आठ लाख से अधिक छात्रों से भेंट कर उन्होंने महाशक्ति भारत के स्वप्न को रचनात्मक कार्यों द्वारा साकार करने का आह्वान किया।