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वैसा ही करते नेताजी हाथ जोड़ कातर स्वर में बोले, “हे आम आदमी! क्या तुम भूत हो?”
“नहीं।”
“देवी-देवता?”
“पागल हो! भला देवी-देवता मेरे जैसे होते हैं!”
“फिर क्या हो?”
“बताया तो है—आम आदमी।”
“मुझे डर लग रहा है। आप मेरा क्या करेंगे?”
“क्या करेंगे, यह बाद में तय होगा, अभी तो गौर करें मेरे कहे पर।”
“आज्ञा कीजिए।”
“फाटक पर आए लोगों से मिलें। उनकी शिकायतों को फौरन दूर कराएँ। क्या करते हैं आप?”
“सेवा।”
“उसे त्यागें और आगे से सिर्फ काम करें। ठीक?”
“ठीक। और कुछ?”
—इसी पुस्तक से
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आज भ्रष्टाचार के नित नए घोटाले और तरह-तरह के अनाचारों की बाढ़-सी आई हुई है। प्रस्तुत उपन्यास में समाज का विवश और आक्रांत स्वर मुखर हुआ है। मनोरंजन के साथ-साथ जनता की उदासीनता को तोड़नेवाली समस्यामूलक कृति।
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अनुक्रमणिका
अपनी बात — Pgs. 7
1. बस का सफर — Pgs. 11
2. सुमति — Pgs. 27
3. सिखावन — Pgs. 33
4. मुरली मनोहर स्वरूप-1 — Pgs. 44
5. मुरली मनोहर स्वरूप-2 — Pgs. 55
6. डॉ. मिर्जा सलीम चिश्ती — Pgs. 67
7. रामलगन त्रिपाठी — Pgs. 91
8. बनवारी — Pgs. 114
9. विलास ठाकुर — Pgs. 150
10. बिंदिया — Pgs. 160
11. तामसी — Pgs. 179
12. तफतीस — Pgs. 190
13. जंग की पूर्व संध्या — Pgs. 199
उपसंहार — Pgs. 200
जन्म : 1920, नैनीताल; पितृभूमि रायबरेली (उ.प्र.)।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में विज्ञान में बी.एस-सी. तथा बी.ए. आगरा यूनिवर्सिटी से।
कृतित्व :1942 से ऑल इंडिया रेडियो से संबद्ध। आजादी के बाद 1948 में रेडियो, ‘आकाशवाणी’ में वापसी। रेडियो नाटकों में विशेष रुचि होने से छोटे-बड़े लगभग 400 नाटक लिखे और प्रस्तुत किए। यूनेस्को एजुकेशन के अनेक प्रोजेक्ट्स में सक्रिय योगदान। 1978 में दूरदर्शन से सेवानिवृत्त होने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर पैट्रियॉट साप्ताहिक में कॉलम लेखन, साथ ही एन.सी.ई.आर.टी. में टेलीविजन परामर्शदाता।
प्रकाशन : ‘सुबह होती है, शाम होती है’ , ‘जी हाँ, जी नहीं’, ‘रंग बेला’ (नाटक संग्रह), ‘अँधेरा छँट गया’ (कहानी संग्रह), ‘वक्त गुजरता है’, ‘आकाशवाणी, दूरदर्शन के 60 साल’।