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Kisse Kavi Sammelanon Ke "किस्से कवि सम्मेलनों के" Book in Hindi- Dr. Kirti Kale
कवि सम्मेलन में कविता पाठ करना और कवि सम्मेलन को संपूर्णता के साथ जीना, दोनों भिन्न-भिन्न पक्ष हैं। प्रत्येक कवि सम्मेलन अपने आप में यूनिक होता है। किसी भी कवि सम्मेलन में कवि भले ही रिपीट हो जाएँ, स्थान और आयोजक भी समान हो जाएँ, यहाँ तक कि कविताएँ भी कवि पुरानी ही सुना दे, परंतु श्रोता और उनका मूड और प्रस्तुति के समय की परिस्थितियाँ कभी एक जैसी नहीं हो सकतीं। इसी कारण किसी भी कवि की कविता कभी मंच लूट लेती है तो कभी मंच की लुटिया भी डुबो देती है। हर कवि सम्मेलन में कोई-न-कोई ऐसी घटना जरूर घटित होती है, जो रेखांकित करने योग्य हो, बशर्ते कोई उसे सलीके से याद करके लिख दे। लिखी हुई घटनाएँ इतिहास बन जाती हैं। ऐसे सभी लिखित संस्मरण कवि सम्मेलन जैसी स्वस्थ परंपरा की बारीकियों को समझने का आधार होते हैं। हिंदी भाषा के अतिरिक्त स्थानीय भाषाओं में हुए पिछले सवा सौ सालों में हजारों कवि सम्मेलनों का सुदीर्घ इतिहास रहा, जो लिपिबद्ध नहीं होने से काल कवलित हो गया और उसके साथ ही वे समस्त कवि, जो उन विशिष्ट घटनाओं के भोक्ता या साक्षी रहे, समय की गर्द में उड़ गए या उड़ा दिए गए। पिछले 40 वर्षों में मैं स्वयं देश-दुनिया के अनेक कवि सम्मेलनों में अनेकानेक कवियों के साथ रहा और खट्टे-मीठे अनुभवों से रूबरू भी हुआ, मगर आज वे सब अनुभव विस्मरण के गर्भ में समा गए। देश के हिंदी कवि सम्मेलनों की बहुमुखी प्रतिभा संपन्न अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राहृश्वत कवयित्री और मंच संचालिका डॉ. कीर्ति काले ने कवि सम्मेलनों की दुनिया में अपने संस्मरणों को रोचक, सरस और प्रांजल भाषा में लिपिबद्ध कर उस विलुप्त साहित्य को जीवंत करके अमरत्व प्रदान किया है।