₹400
माँ एक सुखद अनुभूति व कोमल भाव है, जहाँ समस्त प्रेम शुरू होते हैं और परिणति को प्राप्त होते हैं। इस भाव को शब्दों में बाँध पाना असंभव सा है। इस संकलन के केंद्र में माँ है—सृष्टि की अद्वितीय कृति! मातृत्व एक विशेष अनुभव है और माँ एक अनोखी कहानी, जिसके आदि-अंत का कोई छोर नहीं। माँ की गहराई, माँ की व्यापकता को मापना सरल नहीं है, क्योंकि माँ शब्द में ही संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है। भारतीय संस्कृति में जननी एवं जन्मभूमि दोनों को ही माँ का स्थान दिया गया है। इन दोनों के बिना देह-रचना संभव नहीं। इनको समकक्ष रखते हुए भगवान् श्रीराम के मुख से निकला—‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
‘कितनी माँएँ हैं मेरी’ कहानी संकलन माँ के बहुआयामी रूप को साकार करने का एक प्रयास है। माँ, सौतेली माँ, बिनब्याही माँ और धाय माँ की परंपरागत परिधि से आगे बढ़कर आज के युग में माँ के कई नए रूप— फोस्टर मदर, अडॉप्टेड मदर, सरोगेट मदर, सिंगल मदर, गे मदर...आकार ले चुके हैं।
संकलन की लगभग सभी माँएँ लेखिका के संपर्क में आई हैं और उसके अनुभव का हिस्सा रही हैं। परिस्थितियों की उठा-पटक के बीच उलझे घटनाक्रम में माँ किस प्रकार अस्तित्वमान रहती है, यही बात इस संकलन की कहानियों का प्राणतत्त्व है।
विभिन्न कालखंडों और विभिन्न स्थानों से जुड़ी कुल 12 कहानियों में माँ आपके सम्मुख है। माँ के विविध रूपों को मूर्त करने की यह कोशिश कितनी सफल हुई है, इसका निर्णय पाठक के हाथों में है।
______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम
विदेशी कलेवर में भारतीयता —Pgs. 7
संवेदनाओं का सेतु डेनमार्क से भारत तक —Pgs. 11
भूमिका : माँ आखिर माँ है —Pgs. 13
आभार —Pgs. 15
1. बेघर —Pgs. 19
2. एक छोटी सी चाह... 37
3. आई एम प्राउड ऑफ यू, माँ —Pgs. 53
4. फैनी —Pgs. 65
5. कुंती का कर्ण —Pgs. 81
6. ऐ माँ —Pgs. 93
7. सिंगल मदर से सुपरमदर —Pgs. 107
8. कितनी माँएँ हैं मेरी... 116
9. तुम्हारी धरती माँ —Pgs. 130
10. मैं कुमाता नहीं —Pgs. 143
11. आखिर मैं सासू माँ हूँ —Pgs. 166
12. कबूतरी, थारो कबूतर गूटर-गूटर-गू बोल्यो रे... 180
13. विभिन्न देशों में माँ के नाम —Pgs. 191
अर्चना पैन्यूली
जन्म : मई, 1963।
शिक्षा : आरंभिक जीवन एवं शिक्षा-दीक्षा देहरादून में। 1988-1997, मुंबई, माध्यमिक स्कूलों में अध्यापन एवं लेखन। सितंबर 1997 से डेनमार्क प्रवास।
लेखन : डेनिश लेखिका कारेन ब्लिकशन की रचनाओं का हिंदी में रूपांतरण; प्रथम उपन्यास ‘परिवर्तन’ 2003 में; द्वितीय बहुचर्चित उपन्यास ‘वेयर डू आई बिलांग’ 2010 में; 2014 में ‘वेयर डू आई बिलांग’ का अंग्रेजी अनुवाद; तृतीय उपन्यास ‘पॉल की तीर्थयात्रा’ 2015 में प्रकाशित; फेमिना सर्वे द्वारा वर्ष 2016 के दस सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में घोषित; 2018 में प्रकाशित ‘हाईवे E47’।
सम्मान : साहित्यिक संस्था धाद महिला मंच, देहरादून; इंडियन कल्चरल एसोशिएशन, डेनमार्क द्वारा प्रेमचंद पुरस्कार; इंडियन कल्चरल सोसाइटी, डेनमार्क द्वारा स्वतंत्रता दिवस समारोह में प्राइड ऑफ इंडिया सम्मान; राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त मैमोरियल ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रकवि प्रवासी साहित्यकार पुरस्कार। रचनाओं पर विश्वविद्यालय के हिंदी विद्यार्थियों द्वारा शोध।
संप्रति : एन.जी.जी. इंटरनेशनल स्कूल, डेनमार्क में अध्यापन।
पता : Islevhusvej 72 B Bronshoj, Copenhagen, Denmark
इ-मेल : apainuly@gmail.com
वेबसाइट : www.archanap.com