Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Koi Mai Jhoot Boliya   

₹250

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Prem Janmejay
Features
  • ISBN : 9789383110285
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Prem Janmejay
  • 9789383110285
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 208
  • Hard Cover

Description

प्रेम जनमेजय व्यंग्य-लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं। उनका मानना है कि व्यंग्य लेखन के अनेक उपमान मैले हो चुके हैं। बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उनपर दिशायुक्त प्रहार करने की। व्यंग्य को एक गंभीर तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले प्रेम जनमेजय आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं। पिछले बयालीस वर्षों से साहित्य रचना में सृजनरत इस साहित्यकार ने हिंदी व्यंग्य को सही दिशा देने में सार्थक भूमिका निभाई है। परंपरागत विषयों से हटकर प्रेम जनमेजय ने समाज में व्याप्त आर्थिक विसंगतियों तथा सांस्कृतिक प्रदूषण को चित्रित किया है। ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादन द्वारा हिंदी व्यंग्य में एक नया मापदंड प्रस्तुत किया है। हिंदी के अनेक आलोचकों/लेखकों—नामवर सिंह, नित्यांनद तिवारी, निर्मला जैन, कन्हैयालाल नंदन, श्रीलाल शुक्ल, रवींद्रनाथ त्यागी, रामदरश मिश्र, गोपाल चतुर्वेदी, ज्ञान चतुर्वेदी आदि ने प्रेम जनमेजय के व्यंग्य लेखन पर सकारात्मक लिखा है। धारदार, चुटीले तथा सात्त्विक व्यंग्य-रचनाओं का पठनीय संग्रह।

_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

बीती काहे बिसारूँ — Pgs.  7

1. मनुष्य और ठग — Pgs. 11

2. जनतंत्र की कथा — Pgs. 15

3. मंत्रीक्षेत्रे, कुरुक्षेत्रे — Pgs. 19

4. इंस्पेक्टर का तबादला — Pgs. 24

5. सत्य के पहलू — Pgs. 27

6. अहिंसा परमो धर्मः — Pgs. 30

7. कवित, तेरा क्या होगा? — Pgs. 33

8. साहित्यकारों का मजमा — Pgs. 36

9. एक प्रेम-पत्र — Pgs. 41

10. तू गाए जा — Pgs. 44

11. फिल्म और मेरी पत्नी — Pgs. 47

12. मंत्रीजी का कुत्ता — Pgs. 51

13. शुभचिंतक — Pgs. 55

14. लेखकीय पीड़ा के पाँच दिन  — Pgs. 58

15. बच्चू भैया — Pgs. 61

16. राजधानी में गँवार — Pgs. 66

17. दाढ़ी क्यों बढ़ी? — Pgs. 75

18. हाय तेल! वाह तेल! — Pgs. 77

19. समीक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन — Pgs. 80

20. एक देशभक्त — Pgs. 83

21. सिर मुँड़ाते ओले — Pgs. 87

22. संपादक-स्तुति — Pgs. 90

23. और फिर...? — Pgs. 92

24. समुझै कवि की कविताई — Pgs. 96

25. फिल्मी मुहल्ला — Pgs. 99

26. लघु कथाएँ — Pgs. 103

27. डोलना इंद्र के सिंहासन का — Pgs. 105

28. जलने की प्रथा — Pgs. 106

29. होनेवाली पत्नी—नुकसान दस हजार का  — Pgs. 109

30. स्वर्णाक्षरों की खोज — Pgs. 112

31. चरण-धूल — Pgs. 115

32. निबंध-पाठ की योजना — Pgs. 118

33. अधूरा शोध — Pgs. 121

34. बेशर्ममेव जयते — Pgs. 124

35. चुनाव का आँखों देखा हाल — Pgs. 127

36. इंद्रधनुष का जादू — Pgs. 131

37. अथ स्टडी-लीव प्रकरण — Pgs. 134

38. चिपको आंदोलन, सावधान! — Pgs. 139

39. मक्खियाँ — Pgs. 142

40. चरण-चिह्नों पर — Pgs. 145

41. मैं संयोजक बन गया हूँ — Pgs. 148

42. शिक्षा खरीदो : शिक्षा बेचो — Pgs. 153

43. गलियाँ और भीड़ — Pgs. 156

44. एक गाँव की — Pgs.  163

45. बीच का मौसम — Pgs. 170

46. आह! आया महीना मार्च का — Pgs. 173

47. आया रंगीन टी.वी. 176

48. बस-स्टॉप की भीड़ — Pgs. 179

49. अथ परीक्षक-वृत्तांत — Pgs. 184

50. भेड़ाघाट, चाँदनी रात और कवि-मित्र — Pgs. 188

51. बलात्कार के पहलू — Pgs. 191

52. हमें मत छेड़ो, हम रिसर्च कर रहे हैं — Pgs. 194

53. एक अबाढ़-पीडि़त की व्यथा — Pgs. 197

54. लिफ्ट की तलाश में — Pgs. 199

55. कोई मैं झूठ बोलया — Pgs. 202

The Author

Prem Janmejay

जन्म : 18 मार्च, 1949, इलाहाबाद (उ.प्र.)।
प्रकाशित कृतियाँ : ग्यारह लोकप्रिय व्यंग्य संग्रह; व्यंग्य नाटक ‘सीता अपहरण केस’ का अनेक शहरों में विभिन्न नाट्य संस्थाओं द्वारा सफल मंचन। पिछले नौ वर्ष से व्यंग्य पत्रिका ‘व्यंग्य यात्रा’ के संपादक एवं प्रकाशक। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी हास्य व्यंग्य संकलन’ में श्री श्रीलाल शुक्ल के साथ सहयोगी संपादक। दो समीक्षात्मक पुस्तकें, बाल-साहित्य की तीन पुस्तकें व नव-साक्षरों के लिए आठ रेडियो नाटकों का लेखन। पुरस्कार : ‘पं. बृजलाल द्विवेदी साहित्य पत्रकारिता सम्मान’, ‘शिवकुमार शास्त्री व्यंग्य सम्मान’, ‘आचार्य निरंजननाथ सम्मान’, ‘व्यंग्यश्री सम्मान’, ‘हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार’, हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान’। ‘हिंदी चेतना’, ‘व्यंग्य तरंग’, ‘कल्पांत’ एवं ‘यू.एस.एम पत्रिका’ द्वारा प्रेम जनमेजय पर केंद्रित अंक प्रकाशित।
संप्रति : एसोसिएट प्रोफेसर, कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW