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भारत देश विलक्षणताओं से भरा पड़ा है। आज भी घोर विपन्नता में जीवन बितानेवाला परिवार अपने दरवाजे पर किसी को आया देखकर अपने पेट की चिंता नहीं करता। आनेवाले की चिंता करता है, उसे अतिथि-स्वरूप मानता है। संतुष्टि की चाह में भटकता एक आदमी कहीं सेवा में तो कहीं परमार्थ में संतुष्टि व प्रसन्नता ढूँढ़ रहा है। इस पुस्तक में यात्रा-वृत्तांतों के माध्यम से एक दर्शन को आकार देने की कोशिश की गई है कि जीवन का अर्थ है—‘अहम से वयम’।
राह चलता आदमी आपसे बतियाना चाहता है, बहुत कुछ बाँटना चाहता है, जाते-जाते भी कुछ ऐसा छोड़ जाता है, जो जीवन भर साथ चलता है, कई प्रश्नों के उत्तर दे जाता है और कुछ ऐसे प्रश्न छोड़ जाता है, जिनका प्रश्न बने रहना ही अच्छा लगता है। इस पुस्तक में कुछ प्रश्न भी हैं और कुछ ऐसे उत्तर भी।
प्रस्तुत पुस्तक में झीलों, नदियों, पर्वतों और तालाबों के उस पार वर्जनाओं को तोड़कर पैराडाइम्स को बदलते हुए आम भारतीयों के मन, भावों और विचारों को छूने का प्रयास किया गया है।
देश-भ्रमण के दौरान मानस को उद्वेलित कर देनेवाले, सोचने पर विवश कर देनेवाले सुस्वादु और प्रेरणाप्रद अनुभवों का संग्रह।
जन्म : 5 फरवरी, 1985 को बिजनौर (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी साहित्य), रुहेलखंड विश्वविद्यालय।
कृतित्व : विगत दस वर्षों से सामाजिक कार्यों में संलग्न; युवाओं के व्यक्तित्व विकास में संलग्नता, फोटो प्रदर्शनी।
सम्मान : जगदीश मित्तल काका प्रतिभा सम्मान।