' इन खुले केशों को देखो । मेरे ये केश दुःशासन के रक्त की प्रतीक्षा में खुले हैं । दुःशासन के रक्त से इनका श्रृंगार संभव है । मेरे पति भीम की ओर देखो । वे दुःशासन का रक्त पीने के लिए अपनी जिह्वा को आश्वासन देते आ रहे हैं । दुःशासन के तप्त रक्त से ही वे मेरे खुले केशों को बाँधेंगे ।
'' मेरी केश नागिन दुःशासन का रक्त पीना चाहती है । मैं प्रतिहिंसा की अग्नि में तेरह वर्षों तक जलती रही हूँ । प्रतिहिंसा के कारण ही जीवन धारण किए हूँ; वरना जिस दिन सभा में दुःशासन ने मेरे केश खींचे थे, मैं उसी दिन प्राणों का विसर्जन कर देती । मैं जानती थी कि जिसके पाँच वीर पति हैं, श्रीकृष्ण जैसे सखा हैं, उसे आत्महत्या का पाप करने की आवश्यकता नहीं । आज तुम्हें और महाराज युधिष्ठिर को दुर्योधन से समझौता करते देख मुझे निराशा होती है । क्या इसी समझौते के लिए मैं वन-वन भटकती रही? नीच कीचक का पद-प्रहार सहा? रानी सुदेष्णा की दासी बनी? तुम लोगों का यह समझौता प्रस्ताव मेरी उपेक्षा है, मेरे साथ अन्याय है, नारी जाति के प्रति अपमान की स्वीकृति है । अन्यायी कौरवों से समझौता कर तुम अन्याय को मान्यता दोगे, धर्म का नाश और आसुरी शक्ति की वृद्धि करोगे, साधुता को निराश और पीड़ित करोगे ।. .राजा युधिष्ठिर राजा हैं, वे अपनी सहनशीलता रखें, मैं कुछ नहीं कहती; किंतु तुम तो धर्म- विरोधियों के नाश के लिए ही पृथ्वी पर आए हो । क्या तुम अपने आगमन को भुला देना चाहते हो? पाँच या पचास गाँव लेकर तुम और राजा युधिष्ठिर संतुष्ट हो सकते हैं, किंतु काल-नागिन जैसे मेरे इन केशों को संतोष नहीं हो सकता । मुझे इतना दुःख कभी नहीं हुआ था जितना आज तुम्हारे इस...''
-इसी उपन्यास से
हिंदी विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पूर्व आचार्य, लब्धप्रतिष्ठ विचारक, भाषाशास्त्री, आलोचक एवं उपन्यासकार प्रो. युगेश्वर का जन्म 10 जनवरी, 1934 को बिहार के एक गाँव में हुआ था । साहित्यालंकार तक की शिक्षा बिहार में प्राप्त कर आपने हाई स्कूल से पी-एच.डी. तक की शिक्षा वाराणसी में पूर्ण की । पिछले पचास वर्षो से लेखन, अध्यापन तथा सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय हैं । समाजवादी राजनीति, साहित्य एवं अध्यात्म के विभिन्न क्षेत्रों में शोधपूर्ण तथा विचारोत्तेजक लेखन के कारण आपकी विशिष्ट पहचान है । हिंदी की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपके निबंध प्रकाशित होते रहते हैं । आपकी शोधवृत्ति और ज्ञान के सम्मानार्थ उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ ने आपको ' मधु लिमये फेलोशिप ' प्रदान की है ।
आपने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है; जिनमें से प्रमुख हैं- भाषा शास्त्र : ' मगही भाषा ', ' हिंदी कोश-विज्ञान का उद्भव और विकास '; आलोचना : ' तुलसीदास : आज के संदर्भ में ', ' तुलसी का प्रतिपक्ष ', ' भक्ति : आज के संदर्भ में ', ' सबके प्रेमचंद ', ' प्रसाद काव्य का नया मूल्यांकन ', ' कबीर समग्र ' (दो खंडों में); विचार प्रधान : ' आपातकाल का धूमकेतु राजनारायण ', ' समाजवाद : आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ. लोहिया और जयप्रकाशजी की दृष्टि में ', ' मानस निबंध '; उपन्यास : ' सीता : एक जीवन ', ' राम : एक जीवन ', ' रावण : एक जीवन ', ' हनुमान : एक जीवन ', ' भरत : एक जीवन ', ' संत साहेब ' (संत कबीर के जीवन पर आधारित), ' पर्वत पुत्री ', ' पंचानन ', ' दूसरा इंद्र ', ' देवव्रत ', ' पार्थ ' एवं ' कृष्णा ' ।