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एक रिटायर्ड जनरल को मरे हुए लोगों की आवाजें डराती हैं।
खून जमा देनेवाले सियाचिन में मोर्चे पर तैनात दो शत्रु देशों के
सैनिकों के बीच एक अजीब संबंध जुड़ जाता है।
अरुणाचल के जंगलों में एक युवा लेफ्टिनेंट तीन सैनिकों के सामने दम तोड़ रहा होता है, जिनमें से एक का भाग्य हमेशा के लिए बदल जाता है।
कश्मीर में अपनी पहचान छुपाकर काम कर रहे एक मेजर और उसके जवानों के सीने में कौन सा राज दफन है?
पूर्णतया पुरुषों वाले 13 पैरा के गढ़ में आगरा आ रही एक ट्रेन कैसा आश्चर्य लेकर आनेवाली है?
कौन हैं वे अदृश्य लोग जिनसे लैंसडाउन मिलिट्री हॉस्पिटल में ब्रेन सर्जरी का इंतजार कर रही नन्ही लड़की बातें करती है?
द ब्रेव, 1965 और कारगिल जैसी पुस्तकों को लिखनेवाली लोकप्रिय लेखिका एक ऐसी पुस्तक लेकर आई हैं जो उन कहानियों के जरिए आपको जैतूनी हरे रंग की सेना की छावनियों की दुनिया में ले जाएँगी, जो आपको जितनी खुशी देंगी, उतना ही सोचने पर मजबूर भी करेंगी।
रचना बिष्ट रावत ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया और लंबे समय तक ‘स्टेट्समैन’, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ तथा ‘डेक्कन हेराल्ड’ के साथ कार्य किया। सन् 2005 में वे हैरी ब्रिटेन फेलो बनीं और सन् 2006 में उन्होंने कॉमनवेल्थ प्रेस क्वार्टरली रॉयल रॉयस अवॉर्ड जीता। वर्ष 2008-09 में उनकी प्रथम कहानी ‘मुन्नी मौसी’ कॉमनवेल्थ लघुकथा प्रतियोगिता में खूब सराही गई। उनकी प्रथम पुस्तक ‘द बे्रव : परमवीर चक्र स्टोरीज’ प्रकाशित होकर बहुचर्चित हुई। वे अपने पति लेफ्टनेंट कर्नल मनोज रावत व तेरह वर्षीय पुत्र सारांश के साथ भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण करती रही हैं। उनके विषय में अधिक जानकारी www.rachnabisht.com पर प्राप्त की जा सकती है।