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कुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं—लघु भारत एक स्थान पर आकर जुटता है और हम सगर्व कहते हैं कि महाकुंभ विश्व का सबसे विशाल पर्व है। कुंभ की ऐतिहासिक परंपरा में देश व समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए ऋषियों, महर्षियों के विचार सदैव आदरणीय और उपयोगी रहे हैं। आर्यावर्त के पुराने नक्शे में शामिल देश भी तब महाकुंभों में एकत्र होकर समाज के जरूरी नीति-नियमों को, तत्कालीन शासकों को जानने के लिए ऋषियों की ओर देखते थे और उसके पालन के लिए प्रेरित होते थे। हर बारह वर्ष बाद देश के विभिन्न स्थलों पर शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम को तय कर समाज संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे। आज मानव समाज के सामने जो समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं, उनमें आतंकवाद, भ्रष्टाचार, हिंसा और देशद्रोह के समान मानव को जर्जर कर देनेवाली समस्या है पर्यावरण प्रदूषण। प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है, कभी-कभी तो श्वास लेना भी कठिन जान पड़ता है। कुंभ का सबसे बड़ा संदेश पर्यावरण का संरक्षण करना है।
ज्ञान, भक्ति, आस्था, श्रद्धा के साथ-साथ जनमानस में सामाजिक-नैतिक चेतना जाग्रत् करनेवाले सांस्कृतिक अनुष्ठान ‘कुंभ’ पर एक संपूर्ण सांगोपांग विमर्श है यह पुस्तक।
शिक्षा :एल-एल.बी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।
कृतित्व :अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अनेक दायित्वों का निर्वहन। विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी में सक्रिय भूमिका।
संप्रति :संयोजक, दिव्य प्रेम सेवा मिशन; राष्ट्रीय सहसंयोजक, अंत्योदय एवं एन.जी.ओ. प्रकोष्ठ भाजपा; संपादक—सेवा ज्योति पत्रिका; प्रबंध निदेशक—डिवाइन इंटरनेशनल फाउंडेशन (मानवीय कौशल विकास, पर्यावरण एवं राष्ट्रवादी वैचारिक अधिष्ठान को समर्पित); सहसंयोजक—इंडियन कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी नेटवर्क।
संपर्क : सेवा कुञ्ज, दिव्य प्रेम सेवा मिशन, चंडी घाट, हरिद्वार-249408 उत्तराखंड, भारत
दूरभाष : 01334-222211, +919837088910
इ-मेल : sanjayprem03@gmail.com
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