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इस रोमांचक उपन्यास की शुरुआत जंगलों में जोंगा की ऊबड़-खाबड़ सवारी से होती है, जिसमें आठ साल का कार्तिकेय कुकरेजा अपने बचपन के दिनों में अपने पिता के बॉस के डिनर के लिए पुलिस अधिकारियों के साथ तीतर और काले हिरन के अवैध शिकार के लिए जाता था। उस दिन उसने दृढ़ संकल्प लिया कि एक दिन वह भी आईएएस बनेगा।
अंततः कार्तिकेय को अपने पिता की चापलूसी करते अधीनस्थों की इस पिरामिड में ऊँचाई पर पहुँचने के लिए छटपटाहट का रहस्य मालूम होता है। जब कार्तिकेय की बारी आती है, तो उसे स्वयं उसी तरह की हास्यास्पद दुर्दशा का अनुभव होता है। वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर देखता रहता है कि समय निरर्थकता के साथ तेजी से गुजरता जाता है। उसे अपनी स्थिति उस पुरानी फालतू मेज के समान लगती है, जो हर बार तबादला होने पर एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जाती है।
रेवती के भटकाऊ सपनों का जाल उसे तरसाता है, और उसकी पत्नी-बच्चे उसे वापस यथार्थ की दुनिया में ले आते हैं। क्या वह दोनों को एक साथ सँभाल लेगा या इसमें हमेशा के लिए स्वयं को खो देगा? इस उपन्यास में नौकरशाही के फिसलन भरे जीवन की गाथा की नए तरीके से प्रस्तुति है।
साहसी तरीके से लिखी गई यह पुस्तक हास्य से परिपूर्ण और अलंकृत भाषा में है, जो आशापूर्ण भारत की प्रतीक है।
विपुल मित्रा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। वर्तमान में वे गुजरात में पदस्थ हैं और अपने परिवार के साथ अहमदाबाद में रहते हैं। अपने पेचीदा और चतुराई भरे विचारों को कागज पर उतारने में उन्हें दस वर्ष लगे।
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