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अब मैं कुरसी पर बैठता तो हूँ; पर रात में मुझे अजीब से स्वप्न आते हैं। कभी लगता है, कोई कुरसी खींच रहा है; कभी कोई उसे उलटता दिखाई देता है। कभी कुरसी सीधी तो मैं उलटा दिखाई देता हूँ। मैं परेशान हूँ; पर कुरसी आराम से है। जैसे लोग मरते हैं; पर शमशान सदा जीवित रहता है। ऐसे ही नेता आते-जाते हैं; पर कुरसी सदा सुहागन ही रहती है।
कुरसी की महिमा अपरंपार है। यह सताती, तरसाती और तड़पाती है; यह खून सुखाती और दिल जलाती है; यह झूठे सपने दिखाकर भरमाती है; यह नचाती, हँसाती और रुलाती है; यह आते या जाते समय मुँह चिढ़ाती और खिलखिलाती है।
यह वह मिठाई है, जिसे खाने और न खाने वाले दोनों परेशान हैं। जिसे मिली, वह इसे बचाने में और जिसे नहीं मिली, वह इसे पाने की जुगत में लगा है। धरती सूर्य की परिक्रमा कर रही है और धरती का आदमी कुरसी की। 21वीं सदी की आन, बान और शान यह कुरसी ही है।
कुरसी तू धन्य है। तेरी जय हो, विजय हो।
—इसी संग्रह से
विजय कुमार 1991 बैच के भारतीय रक्षा लेखा सेवा (आई.डी.ए.एस.) के अधिकारी हैं, जो वर्तमान में प्रधान वित्तीय सलाहकार, वायुसेना मुख्यालय, नई दिल्ली में कार्यरत हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल कर सिविल सर्विस में आए। पठन-पाठन जारी रखते हुए एम.बी.ए. (एच.आर.डी. ) की डिग्री भी हासिल की। सरकारी काम-काज की व्यस्तता के बावजूद थोड़ा समय साहित्य सृजन के लिए निकालते रहे | उनकी कविताएँ व कहानियाँ विभिन्न विभागीय पत्रिकाओं में स्थान पाती रहीं । 'तीन पैरोंवाला' काव्य-संग्रह उनकी पहली पुस्तक है। एक कहानी-संग्रह भी शीघ्र प्रकाश्य