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Kursipur Ka Kabir   

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Author Gopal Chaturvedi
Features
  • ISBN : 9789380183114
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Gopal Chaturvedi
  • 9789380183114
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2015
  • 192
  • Hard Cover

Description

कुरसीपुर के कबीर का जन्म एक पंचायत-प्रधान के परिवार में हुआ। उसने अपने पूज्य पिता को बचपन से, नाली-खड़ंजे और नरेगा का सदुपयोग करते; याने पैसे खाते देखा। वह जब से स्कूल गया, पिता के लिए कमाई का साधन बन गया। नरेगा के रजिस्टर पर कहीं पैर का अँगूठा लगाता, कहीं हाथ का। प्रधानजी ने जब अपने घर के पास नाली बनवाई तो उसमें उसने कबीर कुमार के नाम से हस्ताक्षर कर दिहाड़ी कमाई। तब तक वह अक्षर-ज्ञानी हो चुका था। उसके प्राध्यापक उसकी प्रतिभा से चकित थे। वह उसके बाप से संतान की प्रशंसा करते—“प्रधानजी, आपका पुत्र तो जन्मजात नेता है। आपने तो अपने जन्म-स्थान की सेवा की। आप तो पंचायत में रह गए, यह पार्लियामेंट जाकर देश की सेवा करेगा।” नए कबीर की मान्यता है कि सियासत में कभी किसी दल के कोई सिद्धांत-उसूल नहीं हैं, न कोई विकास का कार्यक्रम। हर दल का इकलौता लक्ष्य, कार्यक्रम, उसूल और फलसफा सत्ता की कुरसी पर साम, दाम, दंड, भेद से कब्जा करना है और एक बार कब्जा हो जाए तो उसे बरकरार रखना है। बाकी हर बात जैसे चुनाव घोषणा-पत्र, सेक्यूलर-सांप्रदायिक की बहस, सुशासन वगैरह-वगैरह सिर्फ कोरी बकवास है।
—इसी संग्रह से
हिंदी व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर गोपाल चतुर्वेदी के मारक व्यंग्यबाणों से समाज के हर उस वर्ग को अपना निशाना बनाते हैं, जिनके लिए मानवीय मूल्य, संवेदना और सरोकार कोई मायने नहीं रखते। वे हवा भरे गुब्बारे की तरह हैं, जिन्हें इन व्यंग्यों की तीखी नोक फुस्स कर देती है।

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अनुक्रम

1. कर सेवा या सेवा कर —Pgs. 7

2. सायरन बजाता प्रजातंत्र —Pgs. 13

3. सत्ता और साँड़ —Pgs. 17

4. सावन के दिन चार —Pgs. 23

5. मूँछवाले महान् होते थे! —Pgs. 28

6. मंत्रीजी और जिन का जिन्न —Pgs. 34

7. चुनाव और पत्रकार —Pgs. 40

8. आजादी के बाद रेल —Pgs. 45

9. भौतिक-सांस्कृतिक प्रगति और परिवार —Pgs. 51

10. मंदिर और मनोरंजन —Pgs. 57

11. स्वर्ग में भटका नेता —Pgs. 62

12. कागज की नाव —Pgs. 68

13. चीफ इंजीनियर का भोंपू —Pgs. 74

14. हमारे शहर के बदनाम लोग —Pgs. 79

15. देश के डंडीमार —Pgs. 85

16. कुरसी पर बंदर —Pgs. 91

17. दफ्तर के ‘अफेयर’ —Pgs. 98

18. कबाड़, घर, शहर और नदी —Pgs. 105

19. महानगर की ओर अग्रसर नगर —Pgs. 110

20. दफ्तर, आजादी और नगदेश्वर —Pgs. 115

21. ढक्कन का महत्त्व —Pgs. 121

22. आतंक प्रधान वर्ष में आतंकी से भेंट —Pgs. 128

23. जनतंत्र और जूता —Pgs. 134

24. उनका प्रतीक प्रेम —Pgs. 139

25. दर्शन और सापेक्षता का समता सिद्धांत —Pgs. 146

26. इलेक्शन का प्रदूषण —Pgs. 152

27. फर्क बाजार और मॉल का —Pgs. 159

28. दफ्तर, कूलर, गरमी वगैरह —Pgs. 165

29. चींटी चढ़ी पहाड़ —Pgs. 171

30. कुरसीपुर का कबीर —Pgs. 178

31. संतोषी सदा सुखी की अंतर्कथा —Pgs. 187

The Author

Gopal Chaturvedi

गोपाल चतुर्वेदी का जन्म लखनऊ में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में। हमीदिया कॉलेज, भोपाल में कॉलेज का अध्ययन समाप्त कर उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया। भारतीय रेल लेखा सेवा में चयन के बाद सन् १९६५ से १९९३ तक रेल व भारत सरकार के कई मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया।
छात्र जीवन से ही लेखन से जुड़े गोपाल चतुर्वेदी के दो काव्य-संग्रह ‘कुछ तो हो’ तथा ‘धूप की तलाश’ प्रकाशित हो चुके हैं। पिछले ढाई दशकों से लगातार व्यंग्य-लेखन से जुड़े रहकर हर पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होते रहे हैं। ‘सारिका’ और हिंदी ‘इंडिया टुडे’ में सालोसाल व्यंग्य-कॉलम लिखने के बाद प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ में उसके प्रथम अंक से नियमित कॉलम लिख रहे हैं। उनके दस व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें तीन ‘अफसर की मौत’, ‘दुम की वापसी’ और ‘राम झरोखे बैठ के’ को हिंदी अकादमी, दिल्ली का श्रेष्ठ ‘साहित्यिक कृति पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है।
भारत के पहले सांस्कृतिक समारोह ‘अपना उत्सव’ के आशय गान ‘जय देश भारत भारती’ के रचयिता गोपाल चतुर्वेदी आज के अग्रणी व्यंग्यकार हैं और उन्हें रेल का ‘प्रेमचंद सम्मान’, साहित्य अकादमी दिल्ली का ‘साहित्यकार सम्मान’, हिंदी भवन (दिल्ली) का ‘व्यंग्यश्री’, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘साहित्य भूषण’ तथा अन्य कई सम्मान मिल चुके हैं।

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