₹400
यह पुस्तक माता-पिता को अपने बच्चों को ऑनलाइन खतरों से सुरक्षित रखने के लिए उपयोगी सूचना और सलाह देनेवाली गाइड से कहीं अधिक है। इसमें इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े खतरों और संभावित जोखिमों के बारे में विस्तार से बताया गया है। पुस्तक पाठकों को यह भी बताती है कि कैसे तकनीक-प्रेमी बच्चे भी खतरनाक साइबर-जगत् को खँगालने के दौरान चूक कर जाते हैं।
लेखक ने चेतावनी के उन संकेतों और लक्षणों को भी पूरी बारीकी से गिनाया है, जो उन बच्चों में दिखते हैं, जिनका सामना ऑनलाइन खतरों से होता है। साथ ही उनसे उबरने के व्यावहारिक उपाय भी सुझाए हैं। यह पुस्तक बच्चों को पर्याप्त कौशल देने, डिजिटल दृढ़ता और दबावों को झेलने की क्षमता विकसित करने पर अधिक जोर देती है। बहुत सरल-सुबोध भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में कुछ भी काल्पनिक नहीं है। यह वास्तविक घटनाओं और समर्पित पुलिस अधिकारी के रूप में लेखक द्वारा 12 साल के अपने कॉरियर के दौरान मिले अनुभवों पर आधारित है।
बच्चों को इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के खतरों तथा इनके यथोचित उपयोग से परिचित कराती एक व्यावहारिक पुस्तक।
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अनुक्रम
बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए केरल राज्य आयोग की चेयरपर्सन का नोट —Pgs 7
राज्य पुलिस प्रमुख की डेस्क से —Pgs 11
प्रस्तावना —Pgs 13
लेखकीय —Pgs 15
1. यह पुस्तक क्यों? अभिभावक अपना मूल्यांकन करें —Pgs 21
2. बच्चों के लिए ऑनलाइन खतरे और चुनौतियाँ —Pgs 28
3. पहचान करना व इस चुनौती से लड़ना —Pgs 63
4. डिजिटल पेरेंटिंग की कार्यनीति —Pgs 98
5. सोशल नेटवर्किंग साइट्स को समझना : एक अध्ययन —Pgs 110
6. अभिभावक का नियंत्रण तथा फिल्टर्स —Pgs 119
7. साइबर कानून : वैधानिक रूप से लड़ना —Pgs 139
8. बच्चों में डिजिटल लचीलापन (आघात सहने की शक्ति) 156
9. वास्तविक जीवन में आॅनलाइन दुराचार (शोषण) की घटनाएँ —Pgs 169
10. बार-बार पूछे जानेवाले प्रश्न —Pgs 181
शब्दावली —Pgs 188
ग्रंथ सूची —Pgs 195
ऑनलाइन चाइल्ड सेफ्टी पर वेब रिसोर्सेज —Pgs 197
List of Cybercrime Cells in Kerala —Pgs 199
List of Cybercrime Cells in Major Cities —Pgs 202
दि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल आफेंसिज ऐक्ट, 2012 —Pgs 204
के. संजय कुमार गुरुदीन 2005 बैच (केरल कैडर) के आई.पी.एस. अधिकारी हैं। केरल में और एन.आई.ए., लखनऊ में पुलिस अधीक्षक के रूप में उनका कॉरियर शानदार रहा है। सामाजिक रूप से जागरूक पुलिस अधिकारी होने के कारण छात्रोंं को मादक द्रव्यों के सेवन तथा सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूक कराते रहे हैं। हालाँकि, उनकी सबसे बड़ी चिंता हमेशा से ही ‘इंटरनेट और सोशल मीडिया के दुरुपयोग’ को लेकर रही है और प्रभावित बच्चों से उनकी बातचीत ने ही उन्हें इस पुस्तक को लिखने के लिए प्रेरित किया।