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‘लाजो’ उपन्यास में एक भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी मध्यम परिवार में रहनेवाली लड़की की जीवन-कथा है। इसकी कथावस्तु में यह भी प्रमुखता से दरशाया गया है कि किस तरह भारतीय लड़कियाँ अपने माँ-बाप द्वारा चुने लड़के से ही शादी करती हैं, बाद में कैसी भी परेशानी आने पर उनके विचारों में किसी दूसरे के प्रति रुझान नहीं रहता।
इस उपन्यास की नायिका लाजो (ललिता) अपने माता-पिता के साथ, अपने भाई-बहन के साथ एक मध्यम परिवार में रहती है। समय आने पर शादी हो जाती है। शादी होने के बाद आनेवाले उतार-चढ़ावों को बरदाश्त करती है। दुर्भाग्यवश उसे वापस अपने मायके आना पड़ता है। लगभग 3-4 वर्ष बाद पुनः वापस उसका पति ससम्मान उसे लेकर जाता है और वापस ससुराल जाने के बाद उसके जीवन में बदलाव आता है, जिससे उसकी पारिवारिक व व्यावहारिक जिंदगी आनंदमय हो जाती है। भारतीय परिवारों के जीवन-आदर्शों और एक नारी की सहनशीलता, दृढ़ता, कर्तव्यपरायणता, पति-प्रेम की सजीव झाँकी प्रस्तुत करनेवाला एक रोचक उपन्यास।
जन्म : 28 अगस्त, 1965।
शिक्षा : आर्य समाज स्कूल तथा माता सुंदरी कॉलेज, दिल्ली से बी.ए. (पास)।
डॉ. शशी बुबनाजी की शादी 1986 में श्री सुशील बुबना से हुई, जो विज्ञापन क्षेत्र में व्यवसायी हैं, साथ-ही-साथ समाज-सेवक भी।
शशी बुबना को अपने चारों ओर होनेवाले संघर्षों को लिखकर व्यक्त करना अच्छा लगता है। दो बच्चों लवेश और प्रियंका के जन्म के बाद से खाली समय में कुछ-न-कुछ सीखना उनका शौक रहा। इसी तरह उन्होंने रेकी, वास्तु, टैरो कार्ड, सुजोक और एक्यूप्रेशर में मास्टरी की। एक्यूप्रेशर में एम.डी. भी किया।
प्रकाशन : पहली पुस्तक ‘दास्ताँ जिंदगी की’ तथा पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित।
राष्ट्र सेविका समिति संस्था में सक्रिय सहभागिता। ब्रह्मकुमारी संस्था से राजयोग भी सीखा। मेडिटेशन करना प्रिय शौक है।