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Lady Susan   

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Author Jane Austen
Features
  • ISBN : 9789386054906
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Jane Austen
  • 9789386054906
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 168
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

‘‘आपको  लंबे  जूते  पहनने चाहिए।’’ कुछ पल रुककर वह फिर बाेले, ‘‘लंबे जूते पहनने से एडि़याँ एकदम साफ रहती हैं। काले के साथ लंबे जूते बहुत अच्छे लगते हैं। या आपको लंबे जूते पसंद नहीं हैं?’’
 ‘‘हाँ, पर अगर वे इतने मजबूत हों कि वे आपके पैरों के सौंदर्य को नष्ट न होने दें। वे इस तरह देहात में घूमने के लिए उपयुत नहीं हैं।’’
 ‘‘खराब मौसम में महिलाओं को घुड़सवारी करनी चाहिए। या आप घुड़सवारी करती हैं?’’
 ‘‘नहीं, लॉर्ड।’’
 ‘‘मैं सोचता हूँ, आखिर प्रत्येक महिला यों नहीं करती? औरत घोड़े की पीठ पर बैठी सबसे अच्छी लगती है।’’
 ‘‘पर हो सकता है कि प्रत्येक महिला की रुचि या उसके पास साधन न हों।’’
 ‘‘अगर उन्हें यह पता हो कि वह उन्हें या बना देगा तो उनकी रुचि भी पैदा हो जाएगी और मैं सोचता हूँ, मिस वॉटसन, एक बार जब उनका झुकाव हो जाएगा तो साधन अपने आप बन जाएँगे।’’
—इसी उपन्यास से
——1——
विश्ववियात लेखिका जेन ऑस्टन की प्रसिद्ध कृति, जिसमें पाठक स्त्री-पुरुष संबंध और मानवीय संवेदना की झलक पाएँगे

 

The Author

Jane Austen

जेन ऑस्टन
जन्म : 16 दिसंबर, 1775
अंग्रेजी कथासाहित्य में जेन ऑस्टन का विशिष्ट स्थान है। उनका जन्म सन् 1775 ई. में इंग्लैंड के स्टिवेंटन नामक छोटे से गाँव में हुआ था। माँ-बाप के सात बच्चों में ये सबसे छोटी थीं। उनका प्राय: सारा जीवन ग्रामीण क्षेत्र के शांत वातावरण में ही बीता। प्राइड ऐंड प्रेजुडिस, सेंस ऐंड सेंसिबिलिटी, नार्देंजर, अबी, एमा, मैंसफील्ड पार्क तथा परसुएशन उनके छह मुय उपन्यास हैं। वाट्संस, लेडी सुजैन सैंडिटन और लव ऐंड फ्रेंडशिप उनकी मृत्यु के सौ वर्ष बाद सन् 1922 और 1927 के बीच छपीं। 
जेन ऑस्टन की रचनाएँ कोरी भावुकता पर मधुर व्यंग्य से ओतप्रोत हैं। स्त्री-पुरुष संबंध उनके उपन्यासों का केंद्र बिंदु है, लेकिन प्रेम का विस्फोटक रूप वे कहीं भी नहीं प्रदर्शित करतीं। उनके नारी पात्रों का दृष्टिकोण इस विषय में पूर्णतया व्यावहारिक है। उनके अनुसार प्रेम की स्वाभाविक परिणति विवाह एवं सुखी दांपत्य जीवन में ही है।
स्मृतिशेष : 18 जुलाई, 1817।

 

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