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Laharon ki Goonj & Suraj ki Pahali Kiran   

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Author Tara Meerchandani
Features
  • ISBN : 9789386054432
  • Language : Hindi
  • ...more

More Information

  • Tara Meerchandani
  • 9789386054432
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 184
  • Hard Cover

Description

वर्षा ने कुछ हिचकते हुए कहा, ‘‘जी हाँ।’’
मेरी यह ड्रेस सुंदर है न? मिसेज...’’
‘‘मिसेज मलकाणी।’’ वर्षा ने कहा।
चूडि़याँ खनखनाते हुए उस लड़की ने पुनः कहा, ‘‘ये चूडि़याँ मुझे मेरी माँ ने दी हैं, तुम्हें अच्छी लगती हैं मिसेज...’’
‘‘मिसेज मलकाणी।’’
‘‘मिसेज मलकाणी, मैं तुम्हें एक राज की बात बताऊँ, किसी से बिल्कुल मत कहना, यहाँ जो डॉक्टर है न, छोटा डॉक्टर राकेश...’’
वर्षा ने उसकी ओर जिज्ञासावश देखा।
उसने आगे आकर उसके कान तक मुँह लगाकर धीरे से कहा, ‘‘वह मेरे पीछे पागल है।’’ वह दाँत निकालकर हँसने लगी।
वर्षा हक्की-बक्की रह गई और उसकी ओर आश्चर्य भरी निगाहों से देखने लगी।
उसने थोड़ा शरमाकर कहा, ‘‘मैं खूबसूरत हूँ न, इसलिए। मैं कॉन्वेंट में पढ़ी हूँ न, इसलिए मिसेज...’’
वर्षा की जबान से एक शब्द भी नहीं निकल पाया।
वह वहाँ से भागना चाहती थी।
—इसी संग्रह से

सामाजिक बिंदुओं को स्पर्श करता प्रसिद्ध  सिंधी  साहित्यकार  तारा मीरचंदाणीजी का उपन्यासद्वय जो पाठकीय संवदेना को छुएगा और उसके अंतर्मन में अपना स्थान बना लेगा।

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अनुक्रम

भूमिका : मेरी साहित्यिक यात्रा — Pg. 5

1. लहरों की गूँज — Pg. 19

2. सूरज की पहली किरण — Pg. 105

The Author

Tara Meerchandani

6 जुलाई, 1930 को हैदराबाद सिंध (पाकिस्तान) में एक उच्च मध्यम वर्गीय जमींदार परिवार में जनमी तारा मीरचंदाणी सिंधी की प्रसिद्ध लेखिका हैं, जिनकी रचनाओं का पाठकों ने अपूर्व उत्साह के साथ स्वागत किया है। बाल्यकाल से ही वे लिखने-पढ़ने के कार्यों में रुचि लेती रहीं। छात्र जीवन में ही उन्हें ‘विद्यार्थी’ नामक सिंधी साप्ताहिक के संपादन का दायित्व मिला, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।
विभाजन से उपजी भयंकर त्रासदी का शिकार ताराजी भी हुईं और सबकुछ छोड़कर भारत आ गईं। वे सुबह विद्याध्ययन करतीं और फिर एक कार्यालय में काम करतीं। इसी क्रम में वे सिंधी साहित्य मंडल से जुड़कर लेखन की ओर प्रवृत्त हुईं। उनकी पहली कहानी ‘सुर्ग जो सैर’ प्रकाशित हुई। उसके बाद से उनके लेखन का क्रम निरंतर जारी है। उनकी रचनाओं में समाज के विभिन्न पक्षों का दिग्दर्शन होता है। उनकी लेखनी में मानवीय संवदेना, जीवन-मूल्यों और सामाजिक विडंबनाओं पर अंतर्दृष्टि स्पष्ट झलकती है। 
सन् 1993 में उन्हें उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘हठयोगी’ के लिए प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी सम्मान से विभूषित किया गया। अस्सी वर्ष की अवस्था में भी ताराजी लेखन में सक्रिय हैं। उनकी अनेक रचनाओं का हिंदी, मराठी व गुजराती में अनुवाद हो चुका है।

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