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धौम्य : निर्भय होकर बात करो । मैंने तुमको ' मा भै: ' का उपदेश दिया है । बतलाओ, उस परिस्थिति में तुम क्या करोगे? ललित : ( धौम्य के चरणों में गिरकर) मेरी अब अधिक परीक्षा न ली जाय, गुरुदेव! धौम्य : उठो वत्स, तुम्हारा स्नातक होना, न होना इसी प्रश्न के उत्तर पर निर्भर है । तुम्हारा संपूर्ण भविष्य इसीपर अवलंबित है । ललित : ( नतमस्तक और हाथ जोड़े) क्षमा किया जाऊँ तो निवेदन करूँ । धौम्य : मैं पहले ही कह चुका हूँ- ' मा भै: ' । ललित : कपिंजल के वध का समर्थन करते ही मेरी आत्मा का वध हो जाएगा; मुझे गुरुदेव ने अभी तक जो कुछ सिखलाया है, वह सब धूल में मिल जाएगा । चाहे मुझे आश्रम से निकाल दीजिए, मैं समर्थन नहीं करूँगा । धौम्य : धन्य बेटा, ललित! तुम अब ललितविक्रम हुए! और आज से स्नातक पद के योग्य 1 तुम्हारा प्रतिबोध जाग्रत हो चुका है ।. .जब मैंने राजा रोमक को कपिंजल-वध की योजना बतलाई, तब तुम कौन सा संकल्प-विकल्प कर रहे थे? ललित : मैंने उसी समय निश्चय कर लिया था, जिसका अभी निवेदन किया । गुरुदेव, क्या यह मेरे पिता की परीक्षा नहीं है? धौम्य : है । देखना चाहता हूँ कि उनमें पदमोह अधिक है अथवा धर्ममोह । अभी उन्हें मेरा उद्देश्य मत बतलाना । अब जाओ वत्स, तुम्हारी आत्मा की विजय हो ।
-इसी पुस्तक से
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।