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लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में हुआ। उनकी शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई। लंदन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की और वापस आकर गुजरात के अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर वे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से पूरी तरह जुड़ गए।
स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा आंदोलन में रहा। बारदोली में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए ही उन्हें ‘सरदार’ कहा जाने लगा। सरदार पटेल को 1937 तक दो बार कांग्रेस का सभापति बनने का गौरव प्राप्त हुआ। आजादी के बाद भारत के राजनीतिक एकीकरण में उनके महान् योगदान के लिए इतिहास उन्हें सदैव स्मरण रखेगा। अपनी दृढ़ता के कारण वे ‘लौह पुरुष’ कहलाए।
सरदार पटेल स्वतंत्र भारत के उप-प्रधानमंत्री होने के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। उनकी महानतम देन है 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलय करना। वे नवीन भारत के निर्माता, राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी और भारतीय जनमानस अर्थात् किसान की आत्मा थे। अपने रणनीतिक कौशल, राजनीतिक दक्षता और अदम्य इच्छा-शक्ति के बल पर भारत को एक नई पहचान देनेवाले समर्पित इतिहास-पुरुष की प्रेरणाप्रद जीवनी।
हिंदी साहित्य में एम.ए. तथा अभिव्यंजनावाद पर शोध कार्य। कुछ समय तक कॉलेज में अध्यापन के बाद एक पत्रिका के उपसंपादक बने। एक समाचार एजेंसी में उपसंपादक, एक प्रकाशन संस्थान में प्रकाशन-प्रबंधक, एक समाचार मासिक में वरिष्ठ सहायक संपादक रहे तथा एक विज्ञापन एजेंसी में दो दशक तक वाइस प्रेसीडेंट के पद पर काम किया। इसके साथ-साथ रेडियो व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख, अग्रलेख, आवरण कथाएँ, फीचर, नाटक आदि लिखे। विज्ञापन एजेंसियों के लिए कॉपीराइटिंग तथा लघु चित्रों के लिए पटकथाएँ आदि लिखीं। प्रकाशन संस्थानों के लिए लेखन, अनुवाद, संपादन आदि किया। संप्रति स्वतंत्र लेखन।