प्रस्तुत काव्य संग्रह आदमी की जिजीविषा का अप्रतिम दस्तावेज है। यह जिजीविषा आत्मबल और पुरुषार्थ से अर्जित है। आत्मसम्मान को आगे रख किए गए परिश्रम की गाढ़ी कमाई है यह। आत्मसम्मान की पतली लकीर कभी-कभी अहम की गाढ़ी लकीर में गड्डमड्ड होती है, कवि इसके खतरों से खूब वाकिफ है। वह लैंडमाइन, बूबीट्रैप्स से बचता-बचाता अपने रास्ते पर बढ़ता है। उसकी मान्यता है कि कभी कुछ पूरी तरह समाप्त नहीं होता है। एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुलता है या कहीं कोई खिड़की जरूर खुलती है। वह चाहता है कि नया जो कुछ खुले, वह पुराना बंद होने की छाती-पीट काररवाई में दृष्टि से ओझल न रहे। उसके यहाँ अखाड़े में गिरनेवाले को हारा हुआ नहीं बल्कि लड़ा हुआ कहा जाता है। मिट्टी कभी भी पूरी पीठ में एकसार नहीं पाई जाती है, अत: संपूर्ण हार स्वीकार्य नहीं है। इसे वह जीवन की एक अनिवार्य शर्त मानकर चलता है। गीता का ‘न दैन्यं न पलायनम्’ यहाँ गंभीर उघाड़ के साथ धरातल पर जीवंत है। यही नि:सृत ऊर्जा उसकी जीवनी-शक्ति है, प्राणवायु है। किसी भी साधारण जन के भीतर यह उसी तरह है, जैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि मोमबत्ती की लपलपाती लौ के भीतर एक बिंदु ऐसा होता है जहाँ शीतलता है, ज्वलनशीलता का जोशीला आग्रह नहीं है। कवि के यहाँ यही वह ठीहा है जहाँ मनुष्य की जिजीविषा टिकी है। भीतरी शीतलता से बाहरी मोर्चों की रोजमर्रा झड़पों के बीच कविता अपनी रवानी पर रहती है, व्यष्टि से समष्टि की ओर जाती हुई।
जन्म : 15 अगस्त, सन् 1963 को माता श्रीमती विद्यावती सिंह तथा पिता श्री युधिष्ठिर सिंह के घर।
जन्मस्थान : उत्तर प्रदेश में उन्नाव-हरदोई की सीमा पर बसे एक कस्बे गंजमुरादाबाद में नाना स्व. ठा. गुलाब सिंह राठौर के यहाँ।
गृहस्थान : ग्राम-कुसैला, पत्रालय-सफीपुर, जिला-उन्नाव (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : एम.एस-सी. (बॉटनी) कानपुर वि.वि. से, एम.ए. (हिंदी साहित्य) बुंदेलखंड वि.वि., झाँसी से।
विगत : भारतीय राजस्व सेवा (आई.आर.एस.) के अधिकारी के तौर पर सहारनपुर, देहरादून, झाँसी और दिल्ली में विभिन्न पदों पर कर्तव्य-निर्वहन।
संप्रति : लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी परिषद् (कपार्ट) में मुख्य सतर्कता अधिकारी (सी.वी.ओ.) के पद पर कार्यरत। तत्त्वावधान-ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार।
वर्तमान संपर्क : 011-26261289 (आवास), मो. : 09910293010 ई-मेल : yksinghirs@hotmail.com