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उस दिन घोड़े की लीद या गाय के गोबर पर भी अपचे अनाज के दाने नहीं मिले थे। बच्चे की भूख जब शोभन बरदाश्त नहीं कर सका, तब उसने हिम्मत कर लेफ्टिनेंट हडसन के रसोईघर से थोड़े से चने चुरा लिये थे, पर पिछले दरवाजे से निकलते हुए वह पकड़ा गया। लेफ्टिनेंट हडसन ने चोरी करने के जुर्म में शोभन के साथ आग का खेल खेला, अंगारों पर उसे अपने बच्चे को गोद में लेकर दौड़ाया गया।
हडसन चिल्लाया था, ‘क्यों बे सूअर, आग का खेल खेलेगा, तब खाना दूँगा।’
‘नहीं सरजी ई...।’ गोपू हाथ जोड़कर रोते हुए गिड़गिड़ाया, ‘मुझे खाना नहीं चाहिए सरजी...।’ हिचकियों के साथ कलपते हुए वह अपने बाबू को छोड़ देने की भीख माँग रहा था।
शोभन की आँखों से खून अब भी रिस रहा था। अब वह इस काबिल नहीं रहा कि अपने बच्चे के लिए ईश्वर से दुआ भी कर सके। उसे बहुत पीटा गया और पीटने के क्रम में बंदूक के वुंQदे से उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई। गरम सलाखों से उसकी दोनों आँखें भी फोड़ दी गइऔ। बस अब वह अंतिम साँसें गिन रहा था। कहते हैं, दुनिया का वह मजदूर सबसे अच्छा होता है, जिसे भूख नहीं लगती।
प्रस्तुत कहानियों में लेखक की कलम जमाने की नब्ज पर रही है, उसके तापमान का अंदाज लगा उसने बिना शिलाखंड को तराशे ही सारा जीवन-सच साकार कर दिया है। सामाजिक सरोकारों की ये कहानियाँ मनोरंजन से भरपूर और आtïादित कर देने वाली हैं।
1988 में ‘नवभारत’ नागपुर से पत्रकारिता की शुरुआत। इसके बाद ‘दैनिक राष्ट्रदूत’ में उपसंपादक तथा ‘पाटलिपुत्र टाइम्स’ में फीचर संपादक, ‘स्टार वन’ पर ‘मानो या ना मानो’ का स्क्रिप्ट लेखन; दूरदर्शन से संबद्धता के साथ मौर्य टीवी के डिप्टी एडिटर रहे।
रिलायंस एनर्जी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (मुंबई), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन (नई दिल्ली), बी.एच.यू. (वाराणसी), राँची विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, डॉ. जाकिर हुसैन संस्थान (पटना) में अध्यापन। डीन के रूप में नॉट्रेडेम कम्यूनिकेशन सेंटर (पटना) में कार्य किया।
प्रकाशन : ‘जीत का जादू’; ‘इलेक्ट्रॉनिक @ मीडिया.कॉम’, ‘समाचार : एक दृष्टि’, ‘संपादन विज्ञान (पत्रकारिता), ‘लेफ्टिनेंट हडसन’, ‘सिम्मड़ सफेद’ (कहानी संग्रह), ‘सफल हिंदी निबंध’ (निबंध संग्रह) समेत 16 पुस्तकें प्रकाशित। 250 से भी अधिक नई परिभाषाएँ विकसित कीं। ‘सी.आर.डी.’ के अध्यक्ष रहे।
सम्मान-पुरस्कार : साहित्य के लिए ‘भारतेंदु हरिशचंद्र पुरस्कार’।
ratneshwar1967@yahoo.co.in