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"‘जो लिखा, जीवन में दिखा’
यही है लिखान नियम!
आप भविष्य में अपने जीवन को कैसे देखना चाहते हैं? क्या आपने वह लिखा है? यदि नहीं तो लिख लें और लिखान नियम को जागृत करें क्योंकि लेखन आत्मविश्लेषण, आत्मविकास और सफलता प्राप्त करने का प्रभावकारी तरीका है।
जैसे अनगिनत रहस्य समुंदर की गहराई में छिपे होते हैं, वैसे ही हर इंसान के जीवन में भी घटनाओं, भावनाओं, अनुभवों और विचारों के अनगिनत रहस्य छिपे होते हैं। जब हम अपने जीवन पर गहराई से सोचकर लिखते हैं, अपने अनुभवों को समझने की कोशिश करते हैं तो हमें कई महत्वपूर्ण और मूल्यवान वे बातें पता चलती हैं, जो हमें कामयाबी के शिखर पर ले जाती हैं।
इसके लिए आपको लिखान नियम अनुसार लिखना सीखकर, अनमोल रत्न प्राप्त करने होंगे। जिसके लिए इस पुस्तक में पढ़ें :
– वर्तमान में लेखन से सुंदर भविष्य का निर्माण कैसे करें?
– लेखन को वर्तमान की सफलता का द्वार कैसे बनाएँ?
– लेखन द्वारा अपने आंतरिक ज़ख्मों को कैसे हील करें?
– रिश्तों में विकास करने के लिए क्या और कैसे लिखें?
– लेखन को सरल और रचनात्मक कैसे बनाएँ?
– भाव, विचार, वाणी, लेखन और क्रिया का क्या रहस्य है?
– अपने भावों और विचारों को सकारात्मकता में कैसे परिवर्तित करें?
– लेखन से कुदरत के दिए समाधान का संकेत कैसे समझें?
– लिखान नियम के अनुसार क्या, क्यों और कैसे लिखें?
यह पुस्तक न केवल हमें अपने आपको बेहतर समझने में मदद करेगी बल्कि हमारे जीवन को एक सच्चा अर्थ भी देगी।"
तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।
सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।