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संस्मरण मनोरंजक हो, ज्ञानवर्धक हो, गतिमान हो और पाठक के हृदय को उद्वेलित कर सके तो साहित्य की वैतरणी में बहकर लेखक के साथ पाठक भी तर जाता है। अशोक पंतजी ने ऐसा ही एक वितान रचा है, जिससे यह सीख तो मिलती ही है कि अंगदान जैसा पुण्यकर्म मानव जीवन के लिए कितना आवश्यक है और यह प्रोत्साहित किया ही जाना चाहिए। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की विडंबना और महानगरों में जटिल उपलब्धता की ओर भी इंगित करता है ।
अस्पताल एक दर्दभरी कहानियों की किताब है। हर मरीज की अपनी कहानी, जिसे सुनते-सुनते डॉक्टर भी उकता जाते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। लेकिन रोग की गंभीरता और रोगी की मानसिकता को समझते हुए जो डॉक्टर सांत्वना के अवतार बनकर रोगी को सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं, वे उसके लिए ईश्वर का पर्याय बन जाते हैं।
अनेक बार ऐसा होता है कि रोगी या तो अपनी परेशानी समझा नहीं पाता है या डॉक्टर अपनी व्यस्तता के कारण समय नहीं दे पाता है और रोगी का डॉक्टर अथवा अस्पताल के प्रति रवैया बदलने लगता है । विचारशील व्यक्तित्व के धनी लेखक ने सामाजिक प्रतिबद्धता के अनुरूप अपने संस्मरणों को मानव उत्थान की परिकल्पना करते हुए ऐसी सघन बीमारियों से पीड़ित रोगियों के कल्याण की कामना की है, इसलिए भी यह कदम सराहनीय है।