₹350
"कोरोना महामारी ने जैसे ही भारत में प्रवेश किया, सरकार ने इस महामारी से देशवासियों को बचाने के लिए 'जनता कर्फ्यू' और 'लॉकडाउन' जैसे कारगर उपायों की घोषणा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संबोधन में 22 मार्च, 2020 को देशवासियों से घरों के भीतर रहने और 'सामाजिक दूरी' बनाए रखने के लिए 'जनता कर्फ्यू' अपनाने का अनुरोध किया। अगले दो दिनों में, अर्थात् 24 मार्च, 2020 रात 12 बजे से पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की गई।
'लॉकडाउन के चालीस दिन' पुस्तक में साहित्यकार शान्ता कुमार के फेसबुक पेज की उन 40 पोस्टों का लेखा- जोखा है, जो लेखक के निजी जीवन के अनुभवों पर आधारित हैं। वास्तव में इन पोस्टों को पुस्तकाकार रूप देना इसलिए अच्छा लगा कि उनकी जीवंतता को इन पोस्टों के माध्यम से लोगों ने खूब सराहा था। इन पोस्टों की चर्चा के साथ उनके फेसबुक मित्रों और प्रशंसकों की टिप्पणियों का भी खुलासा किया गया है, जिससे लेखक और फेसबुक मित्रों में संवाद के कारण पैदा हुई रोचकता का आभास हो सके।
प्रस्तुत पुस्तक के लेख भावी पीढ़ी को कोरोना काल के समाज की स्थिति समझने में सहायक सिद्ध होंगे।"
प्रबुद्ध लेखक, विचारवान राष्ट्रीय नेता व हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री शान्ता कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के गाँव गढ़जमूला में 12 सितंबर, 1934 को हुआ था। उनका जीवन आरंभ से ही काफी संघर्षपूर्ण रहा। गाँव में परिवार की आर्थिक कठिनाइयाँ उच्च शिक्षा पाने में बाधक बनीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आकर मात्र 17 वर्ष की आयु में प्रचारक बन गए। तत्पश्चात् प्रभाकर व अध्यापक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
दिल्ली में अध्यापन-कार्य के साथ-साथ बी.ए., एल-एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् दो वर्ष तक पंजाब में संघ के प्रचारक रहे। फिर पालमपुर में वकालत की। 1964 में अमृतसर में जनमी संतोष कुमारी शैलजा से विवाह हुआ, जो महिला साहित्यकारों में प्रमुख हैं। 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में ‘जम्मू-कश्मीर बचाओ’ आंदोलन में कूद पड़े। इसमें उन्हें आठ मास हिसार जेल में रहना पड़ा।
शान्ता कुमार ने राजनीतिक के क्षेत्र में शुरुआत अपने गाँव में पंच के रूप में की। उसके बाद पंचायत समिति के सदस्य, जिला परिषद् काँगड़ा के उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष, फिर विधायक, दो बार मुख्यमंत्री, फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री तक पहुँचे।
शान्ता कुमार में देश-प्रदेश के अन्य राजनेताओं से हटकर कुछ विशेष बात है। आज भी प्रदेशवासी उन्हें ‘अंत्योदय पुरुष’ और ‘पानी वाले मुख्यमंत्री’ के रूप में जानते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें— मृगतृष्णा, मन के मीत, कैदी, लाजो, वृंदा (उपन्यास), ज्योतिर्मयी (कहानी संग्रह), मैं विवश बंदी (कविता-संग्रह), हिमालय पर लाल छाया (भारत-चीन युद्ध), धरती है बलिदान की (क्रांतिकारी इतिहास), दीवार के उस पार (जेल-संस्मरण), राजनीति की शतरंज (राजनीति के अनुभव), बदलता युग-बदलते चिंतन (वैचारिक साहित्य), विश्वविजेता विवेकानंद (जीवनी), क्रांति अभी अधूरी है (निबंध), भ्रष्टाचार का कड़वा सच (लेख), शान्ता कुमार : समग्र साहित्य (तीन खंड) तथा कर्तव्य (अनुवाद)।