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संपूर्ण भारतीय जनमानस में रानी अहिल्याबाई का नाम श्रद्धा के साथ लिया जाता है। अपने जन-हितकारी कार्यों के कारण वे आम जनों के हृदयों में लोकमाता के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
अहिल्याबाई किसी बहुत बड़े राज्य की रानी नहीं थीं। उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था। फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उसे पढ़-जानकर आश्चर्य होता है। एक-एक कर आत्मीय जनों के बिछुड़ते चले जाने पर भी उन्होंने अपना साहस व विवेक नहीं खोया, अपितु समाजोत्थान के कार्यों में लगी रहीं।
लोकमाता अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत के प्रसिद्ध स्थानों और तीर्थों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावडि़यों का निर्माण कराया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्नक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाए, शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की तथा आत्मप्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं।
यह पुस्तक लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन की संपूर्ण गाथा है। उनके प्रेरणादायी जीवन से आज की पीढ़ी संस्कार ग्रहण कर त्याग और सेवा के पथ पर चलेगी, ऐसा विश्वास है।