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वरिष्ठ समाजधर्मी श्री देवदास आपटे के सामाजिक दृष्टिकोण को दरशाते लेखों का पठनीय संकलन। उन्होंने ‘लोक’ के बीच अपना जीवन बिताया है। उनके सुख-दु:ख को देखा, सुना और आत्मसात् किया है। वह ‘लोक’ जिसका जीवन खुली किताब के रूप में होता है। ऐसा ‘लोक’ ग्रामीण जीवन का ही है। अत्यंत सहृदय और संवेदनशील, तो दूसरी तरफ हृदयहीन और कठोर भी। अज्ञान और ज्ञान से भरा हुआ। वह लोक, जो साफ-साफ बोलता है, सबको समझता है।
पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं की गहरी जानकारी, उनके निदान की प्रबल व्यावहारिक सोच और अपनी राजनैतिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देश के कोने-कोने में घूमते रहना आपटेजी के शौक हैं। अतीव संवेदनशील होने के कारण समस्याओं की जड़ तक जाना और उनका समाधान ढूँढ़ना, बेबाकी से बोलना और लिखना इनकी विशेषता रही है।
नेता और जनता, शहर और गाँव, करणीय और अकरणीय में बना फासला दिनानुदिन बढ़ता गया है, इसके साथ समस्याएँ भी। देवदासजी के ये आलेख फासला पाटने की कोशिश करनेवालों के लिए जहाँ मार्गदर्शक हैं, वहीं नीतियाँ और कार्यक्रम बनानेवालों के लिए जानकारियाँ भी।
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अनुक्रम
भूमिका—सामाजिक समस्याओं और निदान का दूसरा पहलू —Pgs. 5
मनोगत —Pgs. 7
1. मतदान के तव —Pgs. 11
2. यमुना है तो हम हैं —Pgs. 16
3. स्वादिष्ट चाय —Pgs. 20
4. हमारा लोकपाल न अन्ना का, न सरकार का —Pgs. 24
5. हमारी जड़ें कहाँ हैं? —Pgs. 29
6. सूखती संवेदना धारा —Pgs. 34
7. जापान, इजराइल और भारत —Pgs. 38
8. लोकतंत्र की सफलता —Pgs. 42
9. युवा पीढ़ी की दिशा —Pgs. 46
10. वारी (यात्रा) : पंढरपुर —Pgs. 50
11. आपातकाल : शासकीय या सामाजिक —Pgs. 56
12. हर दिन ‘शिक्षक दिवस’ हो —Pgs. 61
13. पंद्रह रुपए की आइसक्रीम —Pgs. 65
14. दिवस मनाने का अपना ढंग —Pgs. 69
15. स्वतंत्रता मायने स्वाभिमानी और स्वावलंबी होना —Pgs. 74
16. पारंपरिक रोजगार से विमुख होते नौजवान —Pgs. 77
17. लोकतंत्र का वास्तविक पाँचवाँ स्तंभ —Pgs. 82
18. अपनी जनशति को सही नेतृत्व प्रदान कर बिहार अग्रणी होगा —Pgs. 85
19. साधारण व्यवहारों का असाधारण महव —Pgs. 91
20. सामाजिक इच्छाशति —Pgs. 95
21. शिक्षा और स्वास्थ्य ही प्रमुख हैं —Pgs. 99
22. तलाश एक अदद सुनक की —Pgs. 103
23. समझ की परिधि में —Pgs. 107
24. लोकतंत्र में लोक —Pgs. 111
25. भ्रष्टाचार का विष-वृक्ष —Pgs. 115
26. चरैवेति के मंत्र से —Pgs. 120
27. नई सरकार से अपेक्षा —Pgs. 124
28. गंगा से लेन-देन —Pgs. 128
29. जमाना वी.आई.पी. का —Pgs. 132
30. नारी के चित्र में शति रंग भरनेवाले हाथ भी हों सशत —Pgs. 136
31. व्यवस्थित परिवार से ही प्रगतिशील समाज बनेगा —Pgs. 141
32. पर्यावरण का खेल —Pgs. 145
33. मन मालिक, शरीर मजदूर है —Pgs. 149
34. अनिर्णय के भँवरजाल में —Pgs. 153
35. देश का विकास : रेसिंग कार का ट्रैक? —Pgs. 158
36. ट्रैफिक जाम —Pgs. 163
37. छोटे-छोटे देव : छोटी-मोटी पूजा —Pgs. 167
38. आधुनिक उपकरणों की समस्याएँ और समाधान —Pgs. 172
39. पैसा पेड़ पर नहीं, परिश्रम से उगता है —Pgs. 178
40. भगवान् की पेंडिंग फाइल —Pgs. 182
41. सामाजिक विवेक सँवारने का समय —Pgs. 186
42. परिवारों को संस्कारित करता श्रावण मास —Pgs. 191
43. संस्कारित करनेवाली संस्थाओं का उचित मूल्यांकन —Pgs. 195
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक। राज्यसभा के सांसद रहे। सामाजिक उत्थान एवं समस्याओं के सकारात्मक समाधान के कार्यों के लिए सतत क्रियाशील हैं। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-आर्थिक विषयों पर विपुल संख्या में चिंतनपरक लेख प्रकाशित। हिंदी, मराठी, बांग्ला, गुजराती के साथ-साथ सोलह भाषाओं के जानकार।