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यह पुस्तक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार श्री ए. सूर्य प्रकाश के विगत अनेक वर्षों के दौरान प्रकाशित उनके लेखों का संग्रह है। उनके अधिकांश लेखों में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विषयों का उल्लेख रहता है, जो एक लंबी अवधि के दौरान सामने आए और भारत की राजनीति एवं शासन को प्रभावित किया।
संविधान की कार्यप्रणाली और आजादी के बाद से ही लोकतंत्र के विस्तार में उनकी विशेष अभिरुचि रही है। इस कारण ही इस पुस्तक में ऐसे अध्याय शामिल हैं, जिनमें संवैधानिक विषयों, संसद की कार्यप्रणाली, न्याय-प्रणाली, कार्यपालिका और मीडिया की विशेष रूप से चर्चा की गई है।
लेखक का मत है कि ऐतिहासिक तथ्यों को नकारना नेहरूवादी और मार्क्सवादी विचारधारा के लोगों का शौक रहा है। इन लोगों की ओर से लाई गई विकृतियों को वर्तमान राष्ट्रीय राजनीति के दौर में चुनौती दिए जाने और ठीक किए जाने की जरूरत है। इसकी झलक उनके लेखों में भी मिलती है, जिनमें धर्मनिरपेक्ष बनाम छद्म-निरपेक्ष की लगातार जारी बहस के साथ ही इस विषय पर छिड़े संग्राम की चर्चा है कि क्या राष्ट्रवादी है और क्या राष्ट्रविरोधी।
किसी भी सूरत में, चाहे मुद्दा कोई भी हो, और बहस कितनी ही भीषण क्यों न हो, उनका मानना है कि यह सबकुछ संविधान के दायरे में ही होना चाहिए।
ए. सूर्य प्रकाश विलक्षण लेखक हैं, जिनकी लिखी पुस्तकें व्यापक रूप से सराही गई हैं और काफी लोकप्रिय हुई हैं। वे नियमित स्तंभकार और भारतीय संविधान तथा संसदीय मामलों व शासन पर अग्रणी टीकाकार हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर वे शोधपूर्ण हस्तक्षेप के लिए भी जाने जाते हैं। पिछले 48 वर्षों से ज्यादा समय से श्री प्रकाश कई अखबारों और टेलीविजन में शीर्ष पदों पर रहे हैं।
सूर्य प्रकाश नेहरू स्मृति संग्रहालय और लाइब्रेरी की कार्यकारी परिषद् के सदस्य हैं। इसके अलावा वे लोकपाल सर्च कमेटी और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की सलाहकार परिषद् के सदस्य, इंडिया फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के प्रबंधन बोर्ड के सदस्य भी हैं।
सूर्य प्रकाश से suryamedia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। उनकी वेबसाइट है—asuryaprakash.com