₹500
भारत की वैदिक ऋषिकाओं में महर्षि अगस्त्य की पत्नी ‘लोपामुद्रा' का चरित्र एक क्रियाशील और रचनात्मक स्त्रीशक्ति के रूप में प्रकट हुआ है। राजसी वातावरण से वन के आश्रम-जीवन में प्रवेश करना, महात्रिपुरसुंदरी की शक्ति के रूप में भोग और योग को समान भाव से स्वीकार करना, धन, वन और मन–तीनों भूमिकाओं में सहज रहना, कई बदलती मुद्राओं में भील, कोल-किरात आदि वन्य-जीवों को प्रशिक्षित कर मनुष्यता की सीख देना और अंत में महर्षि अगस्त्य के साथ भारत के दक्षिण भाग को समुन्नत करना उनके ऋषिधर्म की विराटता को सूचित करता और बताता है कि समूची सृष्टि को ध्यान में रखना ही असली ध्यान है, जीवन की विविधता का परिचय ही ज्ञान है और श्रम-साधना ही वास्तविक तप है।
लोपामुद्रा का चरित्र अत्यंत कोमल, वत्सल और करुणा भाव से युक्त मातृशक्ति का उदाहरण है। वे वेदमंत्रों का दर्शन करती हैं, उसकी दिव्यता को सबके जीवन में उतारना चाहती हैं। वे त्रिपुरसुंदरी की श्रीविद्या और हादि विद्या की द्रष्टा हैं तो वे सर्वसाधारण और सर्वहारा वर्ग के विकास की भी चिंता करती हैं। दोनों तत्त्वों का विरल सामंजस्य ही उनकी विशेषता है।
‘लोपामुद्रा' एक दिव्य सशक्त नारी भाव की कुंजी है, जो केवल अपने पति महर्षि अगस्त्य को ही महान् नहीं बनातीं, अपितु दमित, दलित और असहाय मानववर्ग को अपनी छिपी हुई क्षमता से परिचित कराकर संपूर्ण समाज और राष्ट्र को उन्नत धरातल पर प्रतिष्ठित करती हैं।
महेंद्र मधुकर
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी., डी.लिट., पूर्व अध्यक्ष, प्रोफेसर बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय। प्रोफेसर एमेरिटस यू.जी.सी. एवं साहित्य अकादेमी पुरस्कार के पूर्व जूरी सदस्य।
रचना-संसार: (उपन्यास) त्र्यम्बकं यजामहे, लोपामुद्रा, दमयंती और भी, बरहम बाबा की गाछी, कस्मै देवाय, अरण्यानी; (कविता) हरे हैं शाल वन, आगे दूर तक मरुथल है, मुझे पसंद है। पृथ्वी, अब दिखेगा सूर्य, तमाल पत्र, शिप्रापात; (आलोचना) महादेवी की काव्य-चेतना, उपमा अलंकार-उद्भव और विकास, काव्य भाषा के सिद्धांत, भारतीय काव्यशास्त्र; (व्यंग्य) माँगें सबसे बैर, बयान कलमबंद; (ललित निबंध) छाप तिलक सब छीनी; पत्रिकाओं में लेखन।
सम्मान : सत्तर से अधिक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त।
यात्राएँ : अमेरिका एवं यूरोप की अनेक बार यात्राएँ।
संपर्क : ‘मंजुलप्रिया', पशुपति लेन, क्लब रोड, मिठनपुरा, मुजफ्फरपुर-842002 (बिहार)।
दूरभाष : मो. 8579951915, 9471619344