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एक किताब उन सबके लिए, जिन्हें कष्ट और नुकसान से जूझना पड़ा।
यदि ईश्वर है, जो सबकुछ जानता है, सर्वशक्तिमान है और करुणामय भी है, तो चारों तरफ इतना असहनीय दुःख क्यों?
हमारे धार्मिक शास्त्रों में कष्ट पर सफाई में क्या कहा गया है? क्या वह सफाई जाँच में टिक पाती है?
क्या हमारा अनुभव इस बात को स्वीकार करता है कि ईश्वर है? या फिर दो शैतान— समय और संयोग उन सबका कारण है, जिनसे हमें गुजरना पड़ता है?
दुःख और कष्ट का अनुभव कर चुके अरुण शौरी ने शास्त्रों की अग्नि-परीक्षा ली और फिर हमें बताया कि क्यों अंततः उनका झुकाव बुद्ध की शिक्षा की ओर हुआ। उनकी शिक्षा में हमारे दैनिक जीवन के लिए कौन से संदेश हैं?
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अनुक्रम
1. तात मात गुरु सा तू.— Pgs. 7
2. उसकी चिंताएँ, उसकी परीक्षा —Pgs. 32
3. तो आप किसे जिम्मेदार मानते हैं? —Pgs. 55
4. क्या ये व्याया हैं? —Pgs. 104
5. यदि, ‘एक भी पा उसकी इच्छा के बिना नहीं गिरता, लेकिन इससे भी उसके किसी उद्देश्य की पूर्ति होती है...’ —Pgs. 125
6. ईश्वर से अलग दो संत —Pgs. 166
7. यदि संसार में सबकुछ मिथ्या है तो ‘कर्म’ यथार्थ कैसे है? —Pgs. 236
8. प्रतीति जितना मिथ्या —Pgs. 265
9. सहारे को हटाना —Pgs. 293
10. हममें से हर कोई सेवकों का सेवक तो बन ही सकता है —Pgs. 330
11. उपसंहार —Pgs. 358
सन् 1941 में जालंधर (पंजाब) में जनमे श्री अरुण शौरी ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद सिराक्यूज यूनिवर्सिटी, अमेरिका से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। राजग सरकार में वह विनिवेश, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों सहित कई अन्य विभागों का कार्यभार सँभाल चुके हैं। ‘बिजनेस वीक’ ने वर्ष 2002 में उन्हें ‘स्टार ऑफ एशिया’ से सम्मानित किया था और ‘दि इकोनॉमिक टाइम्स’ द्वारा उन्हें ‘द बिजनेस लीडर ऑफ द इयर’ चुना गया था। ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’, ‘दादाभाई नौरोजी पुरस्कार’, ‘फ्रीडम टु पब्लिश अवार्ड’, ‘एस्टर पुरस्कार’, ‘इंटरनेशनल एडिटर ऑफ द इयर अवार्ड’ और ‘पद्मभूषण सम्मान’ सहित उन्हें कई अन्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादक रह चुके हैं। विएना स्थित अंतरराष्ट्रीय प्रेस संस्था ने पिछली अर्ध-शताब्दी में प्रेस की स्वतंत्रता की दिशा में किए गए उनके कार्यों के लिए उन्हें विश्व के पचास ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम हीरोज’ में स्थान दिया है। पच्चीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।