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‘माटी माँगे खून’ में जिन लोगों की कहानियाँ दी गई हैं, वे ऐसे लोग थे, जिन्होंने अपने साहस, शौर्य, सूझबूझ, पराक्रम और चारित्रिक उत्कृष्टता एवं निष्ठा के दम पर दया, प्रेम, करुणा, त्याग और बलिदान जैसे शाश्वत मानवीय मूल्यों को अक्षुण्ण बनाए रखने का स्तुत्य उपक्रम किया तथा अपने कर्तव्य-कर्म से इनसानियत को गौरवान्वित किया।
वे मरता मर गए, पर उसूलों से, अपने ईमान-धर्म से, देश-समाज-संस्कृति और शेष मानवता के प्रति अपने कर्तव्यों से कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने अपने जमीर को जुल्मों के बीच भी जिंदा रखा। घोर यातनाएँ सहीं, वक्त की मार और समाज की विडंबनाओं का दंश झेला, पर मुख से उफ तक न निकाली।
आज जब पैसा-पद-प्रतिष्ठा का प्रलोभन सिर चढ़कर बोल रहा है और व्यक्ति देश, समाज, संस्कृति एवं परिवार से दूर, खुद से बेजार होता चला जा रहा है; उसकी आस्थाएँ, निष्ठाएँ खोखली तथा बेजान होती जा रही हैं; अपनी करनी से वह न सिर्फ अपने लिए बल्कि शेष समाज के लिए भी विग्रह व संत्रास उत्पन्न कर रहा है, ऐसे में इस मर्मस्पर्शी कहानियों की शीतल छाँव संताप को दूर करेगी व मानवता के प्रति लोगों में चेतना जाग्रत् करेगी।
दिल्ली से प्रकाशित दो दैनिक समाचार-पत्रों ‘धर्मात्मा टाइम्स’ और ‘न्यू इंडिया हैराल्ड’ के संपादक रहे। राजधानी से ही प्रकाशित राष्ट्रीय हिंदी मासिक ‘साक्षी भारत’ में लंबे समय तक समाचार संपादक के पद पर कार्य किया।
सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विषयों पर तीन सौ से अधिक लेख, 1000 से अधिक समाचार विश्लेषण तथा 30 से अधिक साक्षात्कार प्रकाशित। अनेक स्मारिकाओं का संपादन करने के साथ-साथ अरुंधति राय की भूमिका वाली चर्चित पुस्तक ‘13 दिसंबर’, बिमल जालान की ‘भारत की राजनीति’ और प्रसिद्ध इतिहासकार नयनजोत लाहिड़ी की ‘फाइंडिंग फॉरगॉटन सिटीज’ समेत दसेक पुस्तकों का अनुवाद। ‘राष्ट्र साधना का खामोश पथिक’ शीर्षक से डॉ. साहिब सिंह वर्मा की जीवनी प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।
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