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महामना मदनमोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता के उन्नायक के रूप में समादृत हैं। कालाकाँकर वाले दैनिक ‘हिंदोस्थान’ के संपादक के रूप में उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को भाषा, शिल्प और शैली के संस्कार दिए। तेजस्वी पत्रकारों की पीढ़ी तैयार की। ‘अभ्युदय’ उनके पत्रकारी कृतित्व का महत्त्वपूर्ण अवदान है। अंग्रेजी दैनिक ‘लीडर’ से जुड़ाव के अलावा वे ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के भी सूत्रधार थे। हिंदी दैनिक ‘हिंदुस्तान’ भी मालवीयजी की परिकल्पना का प्रतिफल है, जिसे बाद में घनश्याम दास बिड़ला ने सँभाला। मालवीयजी ने हिंदी में ‘मर्यादा’ नामक उत्कृष्ट पत्रिका का भी संपादन-प्रकाशन किया।
मालवीयजी का भारत के राजनीतिक-सामाजिक जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति और शाश्वत संस्कारों से ओतप्रोत मालवीयजी आध्यात्मिक नेता भी थे। वे आजादी की लड़ाई के महान् सेनानियों में से एक हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करने का गौरव उन्हें मिला। महामना की यशकीर्ति का उज्ज्वलतम पक्ष है उनके द्वारा काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना, जो भारत में उच्च शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। उनका संपूर्ण जीवन और कृतित्व भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। पत्रकारिता के युग निर्माताओं में अग्रणी रहे मालवीयजी के जीवन का सम्यक् दिग्दर्शन कराती यह पुस्तक पाठकों में श्रद्धा का केंद्र बनेगी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का अध्यापन कर रहे धनंजय चोपड़ा हिंदी और पत्रकारिता विषयों में स्नातकोत्तर उपाधिधारी हैं। ‘संगम की रेती पर चालीस दिन’, पंडवानी गायिका तीजनबाई पर मोनोग्राफ, ‘सिर्फ समाचार’, ‘पत्रकारिता : तब से अब तक’ और ‘अपने समय के वैज्ञानिकों से बातचीत’ उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं। ‘सिर्फ समाचार’ के लिए उन्हें ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र मान पुरस्कार’ प्रदान किया गया है।