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आपने युग के अनुरूप ही मदिरा सेवन के विरुद्ध काव्यात्मक आवाज उठाई है। नशाबंदी में आपकी रचना विशेष रूप से प्रभावपूर्ण सिद्ध होगी। ‘मदांतकी’ में कला की मादकता तो है ही, मदिरा के विषाक्त प्रभाव पर भी विशेष रूप से आपने जोर दिया है। ऐसा उपदेश-युक्त काव्य अपना विशेष महत्त्व रखता है।
——सुमित्रानंदन पंत
आधुनिक समाज के लिए यह बहुत ही उपयोगी पुस्तक है।
—आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
‘मदांतकी’ नामक आपकी पुस्तक की लोकप्रियता के लिए मेरी शुभकामनाएँ।
—डॉ. हरिवंशराय ‘बच्चन’
नशाबंदी विभाग के लिए यह काफी उपयोगी होगी। आपकी रचना सोद्देश्य और मनोरंजक है।
—डॉ. प्रभाकर माचवे
आपने कई पहलुओं से, खासकर चिकित्सक के पहलू से, मदिरा पर बहुत अच्छा प्रकाश डाला है। यह रचना समय के अनुकूल है। इस रचना का हिंदी-जगत् में अच्छा स्वागत होना चाहिए।
—वियोगी हरि
जन्म : 2 जनवरी, 1939 को सोनभद्र के परम पावन तट पर बसे दाऊदनगर, ‘गया’ (अब औरंगाबाद), बिहार में।
शिक्षा : 1953 में प्रवेशिका परीक्षा (मैट्रिक) उत्तीर्ण। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बी.एस-सी. (अंतिम वर्ष) की पढ़ाई के क्रम में ही 1956 में दरभंगा मेडिकल कॉलेज में नामाकंन।
कृतित्व : फुटबॉल के ‘कॉलेज इलेवन’ रहे और एक ‘चित्रकार’ के रूप में बहुचर्चित भी। 1961 में चिकित्सक की डिग्री प्राप्त; जिसके बाद एम.डी.(शिशु रोग) के लिए थीसिस लिखी; साथ ही थीसिस (Thesis) की संक्षिप्तिका (Summary) सर्वप्रथम लिखकर लोगों को आश्चर्य में डाल दिया। बिहार विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ।
दरभंगा से ही इन्होंने डी.सी.पी. तथा डी.टी.एम. ऐंड एच. किया। ‘पूसा’ जिला दरभंगा (अब समस्तीपुर) में करीब 3-4 वर्षों तक स्वतंत्र रूप से मेडिकल प्रैक्टिस की।