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यह बात उस युग की है जिसके लिए कहा जाना है कि मराठे और जाट हल की नोक से, सिक्ख तलवार की धार से और दिल्ली के सरदार बोतल की छलक से इतिहास लिख रहे थे! और अंग्रेज उस समय क्या थे? क्लाइव के विविध रूपों के समन्वय -व्यवसाय सिपाहीगीरी, भेड़ की खाल उतारनेवाली राजनीतिज्ञता, बेईमानी, शूरता, धूर्तता । उस युग में चुनाव नहीं होते थे, परंतु राजनीतिक, राजनीतिज्ञ और राजदर्शी तो थे ही । और राजनीति के क्षेत्र में भयंकर महत्त्वाकांक्षी भी । राजदर्शी वह जो भेड़ के बाल काटे और राजनीतिक वह जो भेड़ की खाल खींच डालने पर ही जुट पड़े । ऐसे समय में माधवजी (महादजी सिंधिया) पैदा हुए । आँधी-तूफान की भँवरों और असंख्य धक्कों में छाती ताने, सिर सीधा किए हुए एक ही माधव - शायद उस युग में दूसरा कोई नहीं । तभी तो कीन ने कहा था, '' एशिया - भर के जननायकों में कोई भी ऐसा नाम नहीं है जो माधवजी सिंधिया की बराबरी कर सके ।'' और जनरल मालकम ने उन्हें ‘Steel Under Velvet Gloves', ' मखमली दस्तानों में फौलाद ' की उपाधि प्रदान की । -इसी पुस्तक के परिचय से भारत के महान् राजदर्शी माधवजी सिंधिया का चरित्र प्रस्तुत कर वर्माजी ने भारतीय साहित्य को वह अमर कृति उपलब्ध करा दी है जो आनेवाले समय में भी समाज और राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करती रहेगी ।
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।