₹175
माधवराव सप्रे हिंदी नवजागरण के पुरोधा पत्रकार, साहित्यकार और राष्ट्र-चिंतक थे । 'छत्तीसगढ़ मित्र' और 'हिंदी केसरी' के संपादक तथा 'कर्मवीर' के प्रेरणास्रोत की भूमिका में उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को न केवल पत्रकारिता के गुणधर्म के संस्कार दिए अपितु लोकमान्य तिलक की तेजस्वी, ओजस्वी और प्रखर पत्रकारिता का सूत्रपात भी किया। हिंदी साहित्य को उन्होंने अपनी मौलिक कहानियों और चिंतनपरक निबंधों तथा सुव्यवस्थित समालोचनाओं के माध्यम से समृद्ध किया। मराठी के तीन महत्त्वपूर्ण ग्रंथों-लोकमान्य का गीता रहस्य, समर्थ रामदास का दासबोध और महाभारत मीमांसा के उत्कृष्ट अनुवाद से हिंदी साहित्य को समृद्ध किय। खड़ी बोली हिंदी का भांडार सर्वतोमुखी भरने के लिए काशी नागरी प्रचारिणी सभा की विज्ञान कोश योजना के अंतर्गत अर्थशास्त्र की मानक शब्दावली पं. माधवराव सप्रे ने ही तैयार की थी। यह तथ्य लगभग अचर्चित है कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित 'संपत्ति शास्त्र' के लिए भी सप्रेजी की पांडुलिपि से सामग्री ली गई थी। यह कहा जा सकता है कि हिंदी में अर्थशास्त्रीय चिंतन की परंपरा का सूत्रपात सप्रेजी ने किया। सप्रेजी के कृतित्व का एक महन्वपूर्ण पक्ष है कि उन्होंने हिंदी क्षेत्र में सामाजिक कार्यो के लिए संस्थाओं और कार्यकता ओं का निर्माण किया। माखनलाल चतुर्वे दी. मेट गोविददाम द्वारकाप्रसाद मित्र मदुश महान-व्यक्तियों का सप्रेजी ने ही राष्ट्र साहित्य और पत्रकांरिता की सेवा की दिशा में प्रेरित औँर प्रवृत्त किया था।
अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधिधारी संतोष कुमार शुक्ल ने नागपुर के 'हितवाद' से पत्रकारी लेखन आर भ किया। साप्ताहिक 'सारथी' में नियमित रूप से आर्थिक विषयों पर टिप्पणी लिखा करते थे । 'पीली माटी पीले हाथ' काव्य संकलन प्रकाशित। हिंदी नवजागरण के अग्रदूत पं.माधवराव सप्रे के बहुआयामी व्यक्तित्व और कालजयी कृतित्व पर गहन शोध-अध्ययन के लिए वे विशेष रूप से जाने जाते हैं।