₹300
महाभारत केवल रत्नों की ही खान नहीं है, असंख्य प्रश्नों की भी खान है। इस महाग्रंथ की कई घटनाएँ और कई कथानक सामान्य पाठक को ही नहीं, अध्ययनशील सुधीजनों को भी ‘यह ऐसा क्यों’ जैसे प्रश्न के साथ उलझा देते हैं। ऐसे अनेक प्रश्न/जिज्ञासाएँ चुनकर इस पुस्तक में संकलित की गई हैं और यथासंभव शुद्ध मन-भावना के साथ उनके निदान/ समाधान का प्रयास किया गया है। इस चर्चा का प्रधान केंद्र वर्तमान संदर्भ रहा है, यह इस ग्रंथ की विशेषता है।
वैसे तो महाभारत की अन्य वैश्विक धर्मग्रंथों के साथ तुलना नहीं कर सकते, क्योंकि महाभारत किसी विशेष धर्म का ग्रंथ नहीं है। महाभारत मानव व्यवहार का शाश्वत ग्रंथ है और सच कहा जाए तो विश्व के सभी धर्मों का निचोड़ है। धर्मसंकट का व्यावहारिक हल सुझाते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘हे अर्जुन, धर्म और सत्य का पालन उत्तम है, किंतु इस तत्त्व के आचरण का यथार्थ स्वरूप जानना अत्यंत कठिन है।’’
सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, जीवन-मृत्यु, पाप-पुण्य, इत्यादि द्वंद्वों को कथानकों और घटनाओं के माध्यम से इस ग्रंथ में निर्दिष्ट किया गया है।
महाभारत के वैशिष्ट्य और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता तथा व्यावहारिकता पर प्रकाश डालती पठनीय पुस्तक।
________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
विषय सूची
दर्शन की दिशा — Pgs. 7
1. मानव व्यवहार का शाश्वत धर्म — Pgs. 11
2. नर, नरोत्तम, नारायण — Pgs. 16
3. अर्जुन की आत्महत्या और युधिष्ठिर का वध — Pgs. 22
4. ब्रह्मास्त्रवाले अश्वत्थामाओं के बीच खोज
संयमी अर्जुनों की! — Pgs. 27
5. तुलसी पौधे और सुगंध — Pgs. 32
6. नकारात्मक तत्त्वों की दारुण पराजय — Pgs. 37
7. महाभारत के पात्र अर्थात् कामव्यवस्था का ऊर्ध्वीकरण — Pgs. 47
8. व्यापक धर्म का अनुसरण — Pgs. 57
9. त्याग का स्थान सर्वोपरि — Pgs. 67
10. पूर्णत्व की अनुभूति — Pgs. 72
11. मनुष्य की विनाशक निर्बलता — Pgs. 77
12. भीष्म पितामह का असंगत ताटस्थ्य — Pgs. 82
13. मृत्यु मीमांसा — Pgs. 91
14. अतिरेक का अस्वीकार — Pgs. 97
15. आर्येतर स्त्रियों का विवाह-बंधन — Pgs. 106
16. शास्त्रों की उपेक्षा करे, वह शूद्र — Pgs. 115
17. सत्य से बेहतर असत्य — Pgs. 121
18. दृश्य-अदृश्य के खेल — Pgs. 127
19. आसक्ति का अंत नहीं और जीवन अनंत नहीं — Pgs. 138
20. संबंध के शिखर से होता संवाद — Pgs. 144
21. शासक सगर्भा नारी है — Pgs. 150
22. प्रजा ही राजा का प्राण है — Pgs. 156
23. संस्कृति का सर्जन कल्पना-कथाओं से नहीं होता — Pgs. 160
गुजरात में।
डॉ. दिनकर जोशी का रचना संसार अत्यंत व्यापक है। 45 उपन्यास, 12 कहानी-संग्रह, 13 संपादित पुस्तकें, महाभारत व रामायण विषयक 9 अध्ययन ग्रंथ और लेख, प्रसंग चित्र, अन्य अनूदित पुस्तकों सहित अब तक उनकी कुल 154 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें गुजरात राज्य सरकार के 5 पुरस्कार, गुजराती साहित्य परिषद् का उमा-स्नेहरश्मि पारितोषिक तथा गुजरात थियोसोफिकल सोसाइटी का मैडम ब्लेवेट्स्की अवार्ड प्रदान किए गए हैं। राजस्थान स्थित जे.जे.टी. यूनिवर्सिटी द्वारा डी.लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित।
उनके ग्रंथों में जीवन कथनात्मक उपन्यासों का विशेष योगदान है। गांधीजी के ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल, गुरुदेव टैगोर, तथागत बुद्ध, काउंट लेव टॉलस्टॉय और सरदार पटेल की जीवनी पर आधारित आपके उपन्यास एवं रामायण-महाभारत पर केंद्रित कई पुस्तकें हिंदी, मराठी तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड, ओडि़या, बांग्ला, अंग्रेजी और जर्मन में अनूदित हो चुकी हैं।
देश की विभिन्न 6 भाषाओं में एक साथ 15 पुस्तकें प्रकाशित होने की घटना को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में स्थान मिला। उन्होंने संपूर्ण महाभारत के गुजराती अनुवाद के 20 ग्रंथों के संपुट का संपादन किया है।
संप्रति : गुजराती साहित्य के सत्त्वशील
ग्रंथों को अन्य प्रादेशिक भाषाओं में प्रकाशित करने में संलग्न।