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स्त्री की पहचान स्वयं उस युग में शून्य थी, क्योंकि माधवी के पिता ययाति गालव की गुरुदक्षिणा के लिए उसे गालव के सुपुर्द कर देते हैं और उसकी इच्छा जानने का यत्न भी नहीं करते हैं। वह निरीह वस्तु सी गालव के पीछे तीन राजाओं को पुत्ररत्न की प्राप्ति कराती है। फिर गालव उसे अपने गुरु विश्वामित्र के सुपुर्द कर देता है, जो यह जानकर बड़ा दुःखी होता है कि माधवी से उसे चार पुत्ररत्न की प्राप्ति हो सकती थी और गालाव के भूलवश वह उससे वंचित रह गया।
माधवी स्वयंवर नहीं करती है अपितु संन्यास ग्रहण कर लेती है। इससे यह आशय निकाला जा सकता है कि नारियाँ भी आसानी से तप और संयम का रास्ता चुनकर अपना इहलोक एवं परलोक सँवारती थीं।
ययाति को अंत में अपनी पुत्री एवं नातियों के तप और सत्कर्मों की जरूरत पड़ती है।
अतः मैं माधवी के पुत्र ‘माधवी पुत्रों’ के नाम से जाते जाते थे, जबकि उनके पिता अन्य दिशाओं के नरेश थे या फिर गुरु। आज स्त्री को कहाँ यह अधिकार है कि उसके बच्चे माँ के नाम से जाने जाएँ।
इस पूरे घटनाक्रम को जब हम उस काल एवं दर्शन में रखते हैं तो पाते हैं कि स्त्री-पुरुष के संबंधों में एक खुलापन था एवं स्त्री शायद भोग्या ही नहीं थी अपितु अपने वजूद के साथ समाज में अपने आप को स्थापित करती थी।
ममता मेहरोत्रा
शिक्षा : एम.एस-सी. (प्राणी विज्ञान)।
कृतित्व : ‘अपना घर’, ‘सफर’, ‘धुआँ-धुआँ है जिंदगी’ (लघुकथा-संग्रह), ‘महिला अधिकार और मानव अधिकार’, ‘शिक्षा के साथ प्रयोग’, ‘विद्यार्थियों के लिए टाइम मैनेजमेंट’, ‘विश्वासघात तथा अन्य कहानियाँ’, ‘जयप्रकाश तुम लौट आओ’ तथा अंग्रेजी में ‘We Women’, ‘Gender Inequality in India’, ‘Crimes Against Women in India’, ‘Relationship & Other Stories’ & ‘School Time Jokes’ पुस्तकें प्रकाशित। RTE Act पर लिखी पुस्तक ‘शिक्षा का अधिकार’ काफी प्रसिद्ध हुई और अनेक राज्य सरकारों ने इस पुस्तक को क्रय किया है। उनकी पुस्तकें मैथिली में भी प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ संक्षिप्त डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का भी निर्माण किया है।
‘सामयिक परिवेश’ एवं ‘खबर पालिका’ पत्रिकाओं का संपादन। अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं से संबद्ध।
संप्रति : निशक्त बाल शिक्षा एवं महिला अधिकारों से संबंधित कार्यों में संलग्न।