₹300
"कुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं। हर बारह वर्ष बाद शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम तय कर समाज को संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे।
कुंभ पर्व के दौरान माँ गंगा में स्नान का महत्त्व भी पुण्यफल देने वाला है। केवल स्नान कर लेने से कुंभ पर्व का उद्देश्य पूरा नहीं होता, जब तक वैचारिक आदान-प्रदान न हो और देश के विभिन्न प्रांतों से विविध भाषा-भाषी आध्यात्मिक उन्नयन, देश के उत्थान की चर्चा, धर्म की चर्चा, अपनी पुरातन संस्कृति को कैसे जीवित रखा जाए तथा समाज को नई दृष्टि देकर उसका मार्गदर्शन कैसे किया जाए आदि पर चर्चा न करें।
आज जिस तरह राष्ट्रीय एकता और भावनात्मक एकता का प्रचार हो रहा है, वैसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। साथ ही वर्तमान गंगा में जिस प्रकार से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, वह चिंतनीय है। अगर आज हम गंगा की पवित्रता व निर्मलता बनाए रखेंगे, तभी हमारी आने वाली पीढ़ियाँ इस दिव्य-पावन 'कुंभ' का अनुष्ठान कर अपनी आध्यात्मिक, धार्मिक, सभ्यता व संस्कृति को बचा पाएँगी।
इसी प्रयास के साथ जनमानस में सामाजिक-नैतिक चेतना जाग्रत् करने वाले सांस्कृतिक अनुष्ठान 'कुंभ' पर एक संपूर्ण सांगोपांग विमर्श है यह पुस्तक, जो सनातन संस्कृति की अजस्र चेतना की वाहक बनेगी।"
शिक्षा :एल-एल.बी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)।
कृतित्व :अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के अनेक दायित्वों का निर्वहन। विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी में सक्रिय भूमिका।
संप्रति :संयोजक, दिव्य प्रेम सेवा मिशन; राष्ट्रीय सहसंयोजक, अंत्योदय एवं एन.जी.ओ. प्रकोष्ठ भाजपा; संपादक—सेवा ज्योति पत्रिका; प्रबंध निदेशक—डिवाइन इंटरनेशनल फाउंडेशन (मानवीय कौशल विकास, पर्यावरण एवं राष्ट्रवादी वैचारिक अधिष्ठान को समर्पित); सहसंयोजक—इंडियन कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी नेटवर्क।
संपर्क : सेवा कुञ्ज, दिव्य प्रेम सेवा मिशन, चंडी घाट, हरिद्वार-249408 उत्तराखंड, भारत
दूरभाष : 01334-222211, +919837088910
इ-मेल : sanjayprem03@gmail.com
web.www.divyaprem.co.in