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ईश्वरभक्ति और देशभक्ति पं. मदन मोहन मालवीय के जीवन के दो मूलमंत्र थे। इन दोनों का उत्कृष्ट संश्लेषण, ईश्वर-भक्ति का देशभक्ति में अवतरण तथा देशभक्ति की ईश्वरभक्ति में परिपक्वता उनके व्यक्तित्व के विशिष्ट गुण थे। उनकी धारणा थी कि मनुष्य के पशुत्व को ईश्वरत्व में परिणत करना ही धर्म है। मनुष्यत्व का विकास ही ईश्वरत्व और ईश्वर है तथा निष्काम भाव से प्राणिमात्र की सेवा ही ईश्वर की सच्ची आराधना है।
वे सार्वजनिक कार्यों के लिए जीवन भर साधन जुटाते रहे और ‘भिक्षुकों में राजकुमार’ कहलाए। वे महान् देशभक्त, सात्त्विक जीवन जीनेवाले मनीषी, जनसाधारण के सेवक, करुणा, सद्भावना और दया की मूर्ति, विदग्ध और उच्चकोटि के वक्ता, प्राणिमात्र से प्रेम करनेवाले, शील के पर्याय, ललितकलाओं के प्रेमी और आहार-विहार में सरलता एवं सात्त्विकता के प्रतीक॒थे।
समाजसेवा, धर्मपरायणता, सेवाभाव, परोपकार और धर्मजागरण के प्रतिरूप महामना मालवीयजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का दिग्दर्शन कराती अत्यंत प्रेरणाप्रद पठनीय पुस्तक।
मंजु ‘मन’ के लिए बचपन से शब्दों के आग्रह को टालना भारी था, इसलिए भी कि शब्द समय के दबाव के बीच अपना अस्तित्व तलाशते लगते, शब्द ही हैं जो भावों के अस्तित्व को प्रमाणित करते हैं। मंजु मन ने बचपन में ही अपने डॉक्टर पिता राजेंद्र प्रसाद से भाषा और दर्शन की दीक्षा ली। दिल्ली में जनमी मंजु आकाशवाणी के अनेक कार्यक्रमों में कवि के रूप में शामिल हो चुकी हैं। तात्कालिक कविता में भारत सरकार द्वारा अनेक सम्मानों से सम्मानित। वैसे अब तक भाषण, निबंध और अन्य गतिविधियों में दर्जनों पुरस्कार।