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सुप्रसिद्ध लेखक वॉलेस डेलोइस वॉटल्स की लिखी इस पुस्तक को वर्ष 1910 में एलिजाबेथ टाउन कंपनी ने प्रकाशित किया था। यह पुस्तक ‘एक ही सबकुछ है’ और ‘सब एक है’ (प्रस्तावना का पहला पेज) हिंदू दर्शनों पर आधारित है। यह पुस्तक जिस विचार पर आधारित है, उसे वॉटल्स ‘सोचने का खास तरीका’ कहते हैं। वॉटल्स का यह ‘खास तरीका’ उस ‘मानसिक उपचार आंदोलन’ से आया, जिसकी शुरुआत 19वीं सदी के मध्य में फिनीस पी. क्विमबी ने की थी। जैसा कि होरोविट्ज ने ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ के एक रिपोर्टर को बताया था, जब लोगों को क्विमबी की ओर से किए गए मानसिक उपायों से शारीरिक कष्ट या बीमारी से राहत महसूस होने लगी, तब वे सोचने लगे कि अगर मन की दशा का मेरी शारीरिक स्थिति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है तो इसके और क्या-क्या फायदे हो सकते हैं? क्या इससे अमीर भी बना जा सकता है? क्या इससे मेरे घर में खुशियाँ आ सकती हैं? क्या प्यार और रोमांस की तलाश भी पूरी हो सकती है? इस तरह के सवालों का एक नतीजा वॉटल्स की ओर से पैसों के साथ ही शारीरिक समस्याओं के लिए क्विमबियाई ‘मानसिक उपचार’ की रणनीति के रूप में सामने आया।
वॉलेस डी. वॉटल्स एक अमेरिकी न्यू थॉट लेखक थे। उनकी निजी जिंदगी पर तो ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उन्हें व्यापक तौर पर पढ़ा गया है। वॉटल्स की सबसे प्रसिद्ध रचना सन् 1910 की ‘द साइंस ऑफ गेटिंग रिच’ पुस्तक है, जिसमें वे बताते हैं कि धनवान कैसे बना जा सकता है। वॉटल्स की बेटी फ्लोरेंस ए. वॉटल्स अपने पिता के जीवन के बारे में एक पत्र में बताती हैं, जो उनकी मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद ‘नॉटिलस’ नाम की न्यू थॉट पत्रिका में छपा था, जिसकी संपादक थीं एलिजाबेथ टाउन। ‘नॉटिलस’ में इससे पहले लगभग हर विषय पर लिखे वॉटल्स के लेख छपे थे और टाउन ही उनकी पुस्तक की प्रकाशक थीं। फ्लोरेंस वॉटल्स ने लिखा था कि उनके पिता का जन्म सन् 1860 में अमेरिका में हुआ था। उनकी औपचारिक पढ़ाई मामूली थी और धन-संपत्ति की दुनिया से वे कोसों दूर थे।