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‘द ग्रैंडमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से विख्यात दादाभाई नौरोजी ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे कि जो भी उनके संपर्क में आता, वह उनसे प्रभावित हुए बिना न रहता था। यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि वे एक साधारण परिवार में जनमे असाधारण व्यक्ति थे।
दादाभाई ने न केवल एक शिक्षाविद् के रूप में, बल्कि एक समाजसुधारक के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने भारतीयों के हितों और अधिकारों की आवाज ब्रिटेन की संसद् में भी उठाई। यही नहीं, बल्कि वे ऐसे प्रथम भारतीय भी बने, जिन्हें ब्रिटेन की संसद् का सदस्य चुना गया। यह दादाभाई के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि भारतीय ही नहीं, बल्कि अंग्रेज भी उनका बहुत सम्मान किया करते थे।
दादाभाई नौरोजी ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ का नारा देकर स्वशासन की माँग की थी। दादाभाई ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी विलक्षण योग्यता से भारत में प्रति व्यक्ति आय का आकलन किया और संपन्न भारत के गरीब भारतीयों की दयनीय दशा स्पष्ट करते हुए अंग्रेज शासकों द्वारा किए जा रहे शोषण की पोल खोली।
भारत माँ के अमर सपूत दादाभाई नौरोजी के प्रेरक जीवन पर प्रकाश डालती पठनीय जीवनगाथा।
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अनुक्रम
लेखकीय — 5
1. जन्म एवं बाल्यकाल — 9
2. समाज-सुधारक के रूप में — 22
3. रास्तगुतार का प्रकाशन — 27
4. सिद्धांतवादी राजनीतिज्ञ एवं व्यापारी — 32
5. इंग्लैंड में सक्रियता — 39
6. ब्रिटिश संसद् में — 49
7. बंबई में एसोसिएशन की स्थापना — 54
8. बड़ौदा की दीवानी — 59
9. बंबई नगरपालिका में सुधार — 71
10. अर्थशास्त्री की भूमिका में — 75
11. लॉर्ड रिपन और दादाभाई नौरोजी — 79
12. कमीशन सदस्य के रूप में — 91
13. कांग्रेस में महवपूर्ण भूमिका — 97
14. नरम विचार के गरम नेता — 116
15. समाजवाद के प्रणेता — 121
16. लेखनी के पुरोधा — 126
17. समकालीन देशभतों के साथ — 133
18. अध्ययन और अनुभव — 139
19. अस्वस्थता-काल में कार्य-निरूपण — 146
20. होमरूल लीग में योगदान — 155
21. अंतिम यात्रा — 158
फ्रीलांस लेखक। समसामयिक विषयों पर नियमित लेखन। प्राइवेट स्कूल में शिक्षक।