Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Maharana Kumbha    

₹300

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Acharya Mayaram ‘Patang’
Features
  • ISBN : 9789389471694
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Acharya Mayaram ‘Patang’
  • 9789389471694
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2024
  • 240
  • Soft Cover
  • 250 Grams

Description

"कुंभकरण सिंह, जिन्हें महाराणा कुंभा के नाम से जाना जाता है, मेवाड़ साम्राज्य के शासक थे। वे राजपूतों के सिसोदिया वंश से थे | उनके शासनकाल के दौरान मेवाड़ उत्तर भारत में सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक बन गया था उन्हें भारत में अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है।

कुंभा मेवाड़ के राणा मोकल सिंह के पुत्र थे। वे मेवाड़ के 48वें राणा थे और वर्ष 1433 ई. में राणा मोकल सिंह के बाद मेवाड़ के शासक बने | जब कुंभा सिंहासन पर बैठे तो उन्हें संपूर्ण मेवाड़ विरासत में मिला, जिसमें चित्तौड़गढ़, कुंभलमेर, राजसमंद, मांडलगढ़, अजमेर, मंदसौर, ईंडर, बदनोर, जालौर, हाड़ौती, डूँगरपुर और बाँसवाड़ा शामिल थे। कुंभा ने अपने जीवन में 56 लड़ाइयाँ लड़ीं। उनकी विजय में जंगलदेश, सपादलपक्ष, मारवाड़, सारंगपुर, नरवर, हरवती, रणथंभौर, वीसलपुर, आबू, सिरोही, गागरोन और नागौर की मुसलिम सल्तनत पर आधिपत्य स्थापित करना प्रमुख थे |

उन्होंने मांडलगढ़, मालवा और गुजरात के सुल्तानों को भी हराया | मेवाड़ की रक्षा करनेवाले 84 किलों में से 32 कुंभा द्वारा बनवाए गए थे | कुंभलगढ़ के किले का निर्माण महाराणा कुंभा ने करवाया था। यह राजस्थान का सबसे ऊँचा किला है। मालवा विजय के बाद महाराणा कुंभा ने चित्तौड़ में 121 फीट ऊँचा, नौ मंजिला विजय स्तंभ बनवाया | शौर्य, पराक्रम, साहस और अद्भुत जिजीविसा के प्रतीक महाराणा कुंभा की प्रेरक गौरवगाथा |"

The Author

Acharya Mayaram ‘Patang’

आचार्य मायाराम ‘पतंग’
जन्म : 26 जनवरी, 1940; ग्राम-नवादा, डाक गुलावठी, जिला बुलंदशहर।
शिक्षा : एम.ए. (दिल्ली), प्रभाकर, साहित्य रत्न, साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री।
रचना-संसार : ‘गीत रसीले’, ‘गीत सुरीले’, ‘चहकीं चिडि़या’ (कविता); ‘अच्छे बच्चे सीधे बच्चे’, ‘व्यवहार में निखार’, ‘चरित्र निर्माण’, ‘सदाचार सोपान’, ‘पढ़ै सो ज्ञानी होय’, ‘सदाचार सोपान’ (नैतिक शिक्षा); ‘व्याकरण रचना’ (चार भाग), ‘ऑस्कर व्याकरण भारती’ (आठ भाग), ‘भाषा माधुरी प्राथमिक’ (छह भाग), ‘बच्चे कैसे हों?’, ‘शिक्षक कैसे हों?’, ‘अभिभावक कैसे हों?’ (शिक्षण साहित्य); ‘पढ़ैं नर-नार, मिटे अंधियार’ (गद्य); ‘श्रीराम नाम महिमा’, ‘मिलन’ (खंड काव्य); ‘सरस्वती वंदना शतक’, ‘हमारे विद्यालय उत्सव’, ‘श्रेष्ठ विद्यालय गीत’, ‘चुने हुए विद्यालय गीत’ (संपादित); ‘गीतमाला’, ‘आओ, हम पढ़ें-लिखें’, ‘गुंजन’, ‘उद्गम’, ‘तीन सौ गीत’, ‘कविता बोलती है’ (गीत संकलन); ‘एकता-अखंडता की कहानियाँ’, ‘राष्ट्रप्रेम की कहानियाँ’, ‘विद्यार्थियों के लिए गीता’ एवं ‘आल्हा-ऊदल की वीरगाथा’।
सम्मान : 1996 में हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित; 1997 में दिल्ली राज्य सरकार द्वारा सम्मानित।
संप्रति : ‘सेवा समर्पण’ मासिक में लेखन तथा परामर्शदाता; राष्ट्रवादी साहित्यकार संघ (दि.प्र.) के अध्यक्ष; ‘सविता ज्योति’ के संपादक।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW