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‘‘ओह! बड़े ही नेक बंदे थे! खुदा उन्हें अपनी दरगाह में जगह दे!’’ उनमें से एक ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा। कुछ क्षणों के लिए सब में खामोशी छा गई।
‘‘भरजाई, तेरे बच्चे कैसे हैं?’’
‘‘वाहेगुरु की किरपा है, सब अच्छे हैं?’’ माँ ने धीरे से कहा।
‘‘अल्लाह उनकी उम्र दराज करे।’’ कई आवाजें एक साथ आईं।
‘‘भरजाई, तुम अपने बच्चों को लेकर यहाँ आ जाओ।’’ किसी एक ने कहा और कितनों ने दुहराया, ‘‘भरजाई, तुम लोग वापस आ जाओ... वापस आ जाओ।’’ प्लेटफॉर्म पर खड़ी कितनी आवाजें कह रही थीं—
‘‘वापस आ जाओ।’’
‘‘वापस आ जाओ।’’
मैंने सुना, मेरे पीछे खड़े मामाजी कुढ़ते हुए कह रहे थे, ‘‘हूँ...बदमाश कहीं के! पहले तो हमें मार-मारकर यहाँ से निकाल दिया, अब कहते हैं, वापस आ जाओ...लुच्चे!’’
प्लेटफॉर्म पर खड़े लोगों ने उनकी बात नहीं सुनी थी। वे कहे जा रहे थे—
‘‘भरजाई, तुम अपने बच्चों को लेकर वापस आ जाओ। बोलो भरजाई, कब आओगी? अपना गाँव तो तुम्हें याद आता है? भरजाई, वापस आ जाओ...।’’
—इसी संग्रह से
—— 1 ——
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. महीप सिंह की लेखनी से निःसृत कहानियों ने मानवीय संवेदना, सामाजिक सरोकार, जातीय संघर्ष, पारस्परिक संबंधों का ताना-बाना प्रस्तुत किया। पठनीयता से भरपूर इन कहानियों ने वर्ग-संघर्ष और सामाजिक कुरीतियों का जमकर विरोध किया।
प्रस्तुत है उनकी लोकप्रिय कहानियों का संग्रहणीय संकलन।
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अनुक्रम
1. उलझन — Pgs. 7
2. पानी और पुल — Pgs. 16
3. कील — Pgs. 22
4. सीधी रेखाओं का वृत्त — Pgs. 28
5. शोर — Pgs. 37
6. सन्नाटा — Pgs. 43
7. सहमे हुए — Pgs. 52
8. धूप की उँगलियों के निशान — Pgs. 64
9. दिल्ली कहाँ है — Pgs. 74
10. शोक — Pgs. 80
11. कौन तार ते बीनी चदरिया — Pgs. 87
12. पटकथा — Pgs. 92
13. सफाई — Pgs. 98
14. धुँधलका — Pgs. 107
15. अंतराल — Pgs. 113
16. आधी सदी का वक्त — Pgs. 120
17. पिता — Pgs. 127
18. कितने सैलाब — Pgs. 137
19. निगति — Pgs. 145
20. दंश — Pgs. 150
21. माँ — Pgs. 155
22. वंशज — Pgs. 161
23. बेटी — Pgs. 167
जन्म : 15 अगस्त, 1930 को उ.प्र. के जिला उन्नाव में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी. आगरा, विश्वविद्यालय, आगरा।
प्रकाशन : सोलह कहानी संग्रह, ‘यह भी नहीं’ (पंजाबी, गुजराती, मलयालम, अंग्रेजी में भी प्रकाशित), ‘अभी शेष है’ (उपन्यास), दो व्यंग्य संग्रह, ‘कुछ सोचा : कुछ समझा’ (निबंध संग्रह), ‘गुरु गोबिंद सिंह और उनकी हिंदी कविता’, ‘आदिग्रंथ में संगृहीत संत कवि’, ‘सिख विचारधारा : गुरु नानक से गुरु ग्रंथ साहिब तक’ (शोधग्रंथ), ‘गुरु गोबिंद सिंह : जीवनी और आदर्श’, ‘गुरु तेगबहादुर : जीवन और आदर्श’, ‘स्वामी विवेकानंद’ (जीवनी), ‘न इस तरफ’, ‘गुरु नानक जीवन प्रसंग’, ‘एक थी संदूकची’ (बाल सहित्य), ‘सचेतन कहानी : रचना और विचार’, ‘पंजाबी की प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘गुरु नानक और उनका काव्य, विचार कविता की भूमिका’, ‘लेखक और अभिव्यक्ति की स्वाधीनता’, ‘हिंदी उपन्यास : समकालीन परिदृश्य’, ‘साहित्य और दलित चेतना’, ‘जापान : साहित्य की झलक’, ‘आधुनिक उर्दू साहित्य, विष्णु प्रभाकर : व्यक्तित्व और साहित्य’ (संपादित), चार दशकों से ‘संचेतना’ का संपादन।
संप्रति : स्वतंत्र लेखन।