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“ससुरी, शंकर धामी के तंत्र को बबाल कहती है?” शंकरधामी ने, उसके सिर के बालों को फिर खींचकर, सिंदूर मलना शुरू किया, “ठकुरानी, इसकी बातों में मत आओ। यह तुम्हारा बेटा नहीं बोल रहा है। ऐसा बोलनेवाला कल तक क्यों नहीं बोलता था? क्यों री, शंकर धामी से चाल चलती है? बचने का सहारा ढूँढ़ती है? बोल, सिंदूर-चूड़ी लेकर जाएगी? बोल, कंघी-फुन्ना लेके जाएगी? बोल-बोल, खिचड़ी खाके जाएगी? या करूँ चिमटा लाल? दूँ मिर्चों की खड़ी धूनी?”
बाहर उपन्याठीराम का ढोल बज रहा था। नगाड़े बज रहे थे। शंकर धामी ने फिर बाल खींचे, तो करन चीख उठा, क्षीण स्वर में, “माँ !...” ठकुरानी का कलेजा मुँह तक आ गया, “मेरे बेटे...!”
शंकर धामी शरीर को जोर से कँपकँपाते हुए बोला, “ससुरी, मंत्र मारूँ...? आँख से कानी, पाँव से लूली बनाऊँ? औरत जात है, दया करूँ, तो और सिर चढ़े! बोल, बोल, ओं, हींग-क्लींग-कुरू-कुरू-फट्-फट्-घमसानी...शमशानी...शंकरा...कंकरा... फट्-फट्...!”
—इसी अंक से
लोक की भाषा में उन्हीं की बात कहते-सुनते प्रसिद्ध साहित्यकार शैलेश मटियानी की सामाजिक कहानियों का एक और पठनीय संग्रह।
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अनुक्रमणिका
1. मैमूद — Pgs. 9
2. कालिका-अवतार — Pgs. 19
3. बाली-सुग्रीव — Pgs. 27
4. दशरथ — Pgs. 37
5. नीत्शी — Pgs. 48
6. माता — Pgs. 56
7. असमर्थ — Pgs. 71
8. कठफोड़वा — Pgs. 82
9. सुहागिनी — Pgs. 91
10. ब्राह्मण — Pgs. 101
11. रहमतुल्ला — Pgs. 114
12. पत्थर — Pgs. 126
13. प्यास — Pgs. 133
14. संस्कृति — Pgs. 146
15. भय — Pgs. 155
16. हारा हुआ — Pgs. 164
17. महाभोज — Pgs. 175
18. दीक्षा — Pgs. 185
19. चील — Pgs. 193
जन्म : 14 अक्तूबर, 1931 को अल्मोड़ा जनपद के बाड़ेछीना गाँव में।
शिक्षा : हाई स्कूल तक।
शैलेश मटियानी का अभिव्यक्ति-क्षेत्र बहुत विशाल है। वे प्रबुद्ध हैं, अत: लोक चेतना के अप्रतिम शिल्पी हैं। श्रेष्ठ कथाकार के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की ही, निबंध और संस्मरण की विधा में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कृतित्व : तीस कहानी-संग्रह इकतीस उपन्यास तथा नौ अपूर्ण उपन्यास, तीन संस्मरण पुस्तकें, निबंधात्मक एवं वैचारिक विष्ियों पर बारह पुस्तकें, लोककथा साहित्य पर दस पुस्तकें, बाल साहित्य की पंद्रह पुस्तकें। ‘विकल्प’ एवं ‘जनपक्ष’ पत्रिकाओं का संपादन।
पुरस्कार एवं सम्मान : प्रथम उपन्यास ‘बोरीवली से बोरीबंदर तक’ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत; ‘महाभोज’ कहानी पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘प्रेमचंद पुरस्कार’; सन् 1977 में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से पुरस्कृत; 1983 में ‘फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ पुरस्कार’ (बिहार); उत्तर प्रदेश सरकार का ‘संस्थागत सम्मान’ ; 1994 में कुमायूँ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डी.लिट.’ की मानद उपाधि; 1999 में उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा ‘लोहिया सम्मान’; 2000 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा ‘राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’।
महाप्रयाण : 24 अप्रैल, 2001 को दिल्ली में।