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‘कमल कीचड़ में ही खिलते हैं,’ यह उक्ति पं. दीनदयाल उपाध्याय पर ठीक बैठती है। निर्धनता में जन्म लेकर राष्ट्र-चिंतक के शीर्ष पद पर सुशोभित होकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया। बाल्यकाल से ही दीनदयालजी कुशाग्र बुद्धि और अध्ययनशील प्रवृत्ति के रहे। दीनदयालजी जैसी कुशाग्रता, बौद्धिकता, कर्मठता, सहृदयता और अनुशासनप्रियता का बेजोड़ समुच्चय किसी में नहीं था। इसके चलते वे सभी के प्रिय प्रचारक बन चुके थे। इन्हीं विशेषताओं को देखकर एक बार परम पूजनीय श्रीगुरुजी ने उनकी सराहना करते हुए कहा था, ‘‘दिल को गरम तथा दिमाग को ठंडा रखने की कला केवल दीनदयाल को ही ज्ञात है। वे इसमें पूर्णतः निपुण हैं। दिल की गरमी ऊपर चढ़कर उनके दिमाग का संतुलन नहीं बिगाड़ सकती तथा दिमाग की ठंडक में नीचे आकर उनके दिल की गरमी को ठंडा करने की सामर्थ्य नहीं है।’’
दीनदयालजी जिस क्षेत्र में गए, वहाँ समर्पण भाव से कार्य किया और अभूतपूर्व सफलता पाई। पत्रकारिता में उन्होंने ज्वलंत लेख लिखकर ख्याति प्राप्त की।
चिंतक, मनीषी, कुशल राजनीतिज्ञ, अद्वितीय संगठनकर्ता एवं राष्ट्रचेता पं. दीनदयालजी की संपूर्ण जीवन-कथा, जो हर चिंतनशील भारतीय के मन-मस्तिष्क को राष्ट्रवाद के भाव से ओत-प्रोत कर देगी।
जन्म :5 जून, 1983 ग्राम बघेड़ा, जनपद मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा :मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एवं एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान)।
प्रकाशन :डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी शोध अधिष्ठान द्वारा प्रकाशित लघु पुस्तिकाएँ—‘अमेय मैत्री-रविंद्रनाथ ठाकुर और डॉ.श्यामाप्रसाद मुकर्जी’, ‘अग्नि पथङ्तडॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी और कश्मीर’, ‘उत्तिष्ठ कौंतेय’, ‘भारत 2020 : आगे की चुनौतियाँ’, ‘चुनौतियाँ और रणनीति : भारत की विदेश नीति पर पुनर्विचार’, ‘उभरती राजनीतिक प्रवृत्तियाँ : संभावनाएँ एवं अपेक्षाएँ’, ‘धारा-370’, ‘Thus Spake Syama Prasad’, ‘India-Afghanistan : Cementing the Relationship’, ‘Challenge and Strategy : Rethinking India’s Foreign Policy’, ‘Current Developments in Tibet and China : Implications for India’, ‘The Triangle : China-Tibet-India–New Faces-Old Issues’, ‘Sardar Patel Other Facts’ एवं राज्य सभा सांसद श्री तरुण विजय की पुस्तक ‘मेरी आस्था भारत’ और ‘मन का तुलसी चौरा’ में संपादन सहयोग।
संप्रति :डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी शोध अधिष्ठान, नई दिल्ली में रिसर्च एसोसिएट के रूप में कार्यरत।