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Main J. Krishnamurti Bol Raha Hoon   

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Author Ed. Rajasvi
Features
  • ISBN : 9789386001979
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ed. Rajasvi
  • 9789386001979
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 152
  • Hard Cover
  • 300 Grams

Description

जिद्दू कृष्णमूर्ति का नाम आध्यात्मिक जगत् में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जब वे मात्र तेरह वर्ष के थे, तभी उनमें एक आध्यात्मिक गुरु होने की विशिष्टताएँ दृष्टिगोचर होने लगी थीं। उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी आध्यात्मिकता का परचम लहराया।

जे. कृष्णमूर्ति के विचार केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक दृष्टि से अत्यंत महवपूर्ण हैं, जो जाति, धर्म और संप्रदाय में उलझे, असमंजस में फँसे और दिग्भ्रमित हुए लोगों का यथोचित मार्गदर्शन करते प्रतीत होते हैं।

उन्होंने मानव-जीवन के लगभग सभी पहलुओं को अपनी विचारशीलता के दायरे में लाने का सफल प्रयास किया है। किंचित् मात्र भी ऐसा नहीं लगता कि जीवन की कोई भी जटिल वीथि उनकी दृष्टि से ओझल हो गई हो। उनके जीवन का परम लक्ष्य विश्व को शांति, संतुष्टि और संपूर्णता प्रदान करना था, ताकि ईर्ष्या, द्वेष और स्वार्थ का समूल नाश किया जा सके। वे अपने जीवन-लक्ष्य में काफी हद तक सफल रहे। जो भी उनके संपर्क में आया, मानो उनका ही होकर रह गया।

उनकी प्रेरक वाणी के कुछ रत्न इस पुस्तक में संकलित हैं।

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अनुक्रम

 

दो शद—5

72. फूल—85

अध्यात्मवे जे. कृष्णमूर्ति—11

73. भय—85

1. अकेलापन—15

74. भय और प्रेम—90

2. अंत—16

75. भयभीत—91

3. अतीत—17

76. मन—93

4. अतीत का महव—20

77. मन की इच्छा—95

5. अंधानुकरण—20

78. मन का स्थायित्व—96

6. अधीरता—21

79. धार्मिक व्यति—96

7. अनुकरण—21

80. मनुष्य—96

8. अनुसंधान—22

81. मनोवैज्ञानिक समय—97

9. अपने बारे में—22

82. पलायन और बदलाव—98

10. अलगाव—23

83. मृत्यु—98

11. अवधान—24

84. मस्तिष्क—104

12. अवलोकन—25

85. महवाकांक्षा—105

13. अवस्था—26

86. मानव-जाति—106

14. अवलोकन का अर्थ—27

87. मानव-संबंध की    समस्या—106

15. अस्तित्व का अर्थ—27

88. मानसिक प्रक्रिया—107

16. आत्मनिर्भरता का ज्ञान—28

89. मुति—107

17. आदर्श—28

90. मूलभूत क्रांति—107

18. आसति और निर्भरता—30

91. भय से मुति—108

19. आसति की समस्याएँ—30

92. यथार्थ एवं द्वंद्व की    समझ—109

20. आवश्यकताओं    पर टिके संबंध—31

93. रिश्ते—एक दर्पण——110

21. ईश्वर—31

94. वैश्विक क्रांति—110

22. इच्छा—32

95. व्यवस्था—111

23. कंप्यूटर—34

96. विचार—112

24. कर्म-व्यवस्था—35

97. विचार की प्रक्रिया—115

25. कर्म की सार्थकता—35

98. विश्वास—117

26. क्रांति—35

99. वर्तमान—118

27. कारण—37

100. विशुद्धता—118

28. गतिविधि के    परिप्रेक्ष्य में संबंध—38

101. विशेषज्ञता—119

29. गवेषणा—38

102. वैश्विक समस्या—119

30. गतिविधि और संबंध—39

103. शरीर—119

31. चेतना—39

104. शांति—120

32. छवि का अर्थ—41

105. शांति की स्थापना    का कार्य—121

33. जिम्मेदारी का अहसास—42

106. शिक्षा का अर्थ—122

34. जीवन—42

107. शिक्षा का उद्देश्य—124

35. जीवन या है?—44

108. स्थायी—124

36. जीवन और मृत्यु—45

109. स्थायित्व—125

37. जनसमूह—46

110. स्वबोध—126

38. जीवन-चक्र—46

111. संकल्प—126

39. तटस्थता—47

112. सच या है?—127

40. तुलना—49

113. सत्य का ज्ञान—128

41. तपस्विता—50

114. सद्गुण—129

42. दर्पण में संबंध—50

115. संक्रांति काल—129

43. दु:ख—51

116. सत्ता—130

44. दु:ख की प्रवृत्ति—56

117. संपर्क—130

45. दु:ख का अवसान—57

118. संबंधों का अवलोकन—131

46. दु:ख का मूल कारण—58

119. संबंधों का द्वंद्व—131

47. द्वंद्व—58

120. संबंधों का महव—132

48. दृष्टिकोण—59

121. संबंधों का स्वरूप—133

49. ध्यान—60

122. संबंधों की जटिलता—133

50. धर्म—61

123. संबंधों की समझ :    एक समस्या—133

51. धारणाएँ—63

124. संबंधों में मनमुटाव    का कारण—134

52. धारणा पर    आधारित संबंध—64

125. संबंध की समस्या—135

53. नदी—64

126. समझ की उत्पत्ति—135

54. निरीक्षण—65

127. समय—136

55. निरंतरता—65

128. सम्यक् कार्य—140

56. निर्भरता पर    आधारित संबंध—70

129. सम्यक् विचार—141

57. नूतन—71

130. सम्यक् विचारधारा—141

58. प्रकाश की अनुभूति—71

131. समस्या—143

59. पलायन—72

132. समाज—144

60. पर्वत—72

133. समाज के साथ संबंध—145

61. परनिर्भरता—73

134. संसार—146

62. प्रयास—73

135. संस्कारबद्धता—146

63. प्रज्ञा—73

136. सादगी—146

64. प्रज्ञा का आविर्भाव—74

137. सुख—147

65. प्रतिमा —74

138. सीखने का अर्थ—148

66. परिपवता—76

139. सीखने की ललक—149

67. प्रेम—77

140. सीमितता—149

68. प्रेम या है?—83

141. सोच-विचार—149

69. प्रेम और दु:ख—83

142. ज्ञान—149

70. पुनर्जन्म—84

143. ज्ञान का अर्थ—150

71. पूर्वनियोजन—84

 

The Author

Ed. Rajasvi

राजस्वी

जन्म : 2 जून, 1967 को ग्राम लाँक, जिला शामली, उार प्रदेश में।

शिक्षा : स्नातक (उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद)।

कृतित्व : ‘हरियाणा हैरिटेज’ में संपादन कार्य किया। दिल्ली के कई प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों के लिए वैतनिक एवं स्वतंत्र रूप से संपादन-लेखन कार्य; विभिन्न प्रकाशन संस्थानों से अब तक लगभग 65 पुस्तकें प्रकाशित। देश की सामाजिक समस्याओं पर 10 कहानियाँ एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर अनेक लेख प्रकाशित।

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