₹300
जिद्दू कृष्णमूर्ति का नाम आध्यात्मिक जगत् में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जब वे मात्र तेरह वर्ष के थे, तभी उनमें एक आध्यात्मिक गुरु होने की विशिष्टताएँ दृष्टिगोचर होने लगी थीं। उन्होंने न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी आध्यात्मिकता का परचम लहराया।
जे. कृष्णमूर्ति के विचार केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक दृष्टि से अत्यंत महवपूर्ण हैं, जो जाति, धर्म और संप्रदाय में उलझे, असमंजस में फँसे और दिग्भ्रमित हुए लोगों का यथोचित मार्गदर्शन करते प्रतीत होते हैं।
उन्होंने मानव-जीवन के लगभग सभी पहलुओं को अपनी विचारशीलता के दायरे में लाने का सफल प्रयास किया है। किंचित् मात्र भी ऐसा नहीं लगता कि जीवन की कोई भी जटिल वीथि उनकी दृष्टि से ओझल हो गई हो। उनके जीवन का परम लक्ष्य विश्व को शांति, संतुष्टि और संपूर्णता प्रदान करना था, ताकि ईर्ष्या, द्वेष और स्वार्थ का समूल नाश किया जा सके। वे अपने जीवन-लक्ष्य में काफी हद तक सफल रहे। जो भी उनके संपर्क में आया, मानो उनका ही होकर रह गया।
उनकी प्रेरक वाणी के कुछ रत्न इस पुस्तक में संकलित हैं।
____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम |
|
दो शद—5 |
72. फूल—85 |
अध्यात्मवे जे. कृष्णमूर्ति—11 |
73. भय—85 |
1. अकेलापन—15 |
74. भय और प्रेम—90 |
2. अंत—16 |
75. भयभीत—91 |
3. अतीत—17 |
76. मन—93 |
4. अतीत का महव—20 |
77. मन की इच्छा—95 |
5. अंधानुकरण—20 |
78. मन का स्थायित्व—96 |
6. अधीरता—21 |
79. धार्मिक व्यति—96 |
7. अनुकरण—21 |
80. मनुष्य—96 |
8. अनुसंधान—22 |
81. मनोवैज्ञानिक समय—97 |
9. अपने बारे में—22 |
82. पलायन और बदलाव—98 |
10. अलगाव—23 |
83. मृत्यु—98 |
11. अवधान—24 |
84. मस्तिष्क—104 |
12. अवलोकन—25 |
85. महवाकांक्षा—105 |
13. अवस्था—26 |
86. मानव-जाति—106 |
14. अवलोकन का अर्थ—27 |
87. मानव-संबंध की समस्या—106 |
15. अस्तित्व का अर्थ—27 |
88. मानसिक प्रक्रिया—107 |
16. आत्मनिर्भरता का ज्ञान—28 |
89. मुति—107 |
17. आदर्श—28 |
90. मूलभूत क्रांति—107 |
18. आसति और निर्भरता—30 |
91. भय से मुति—108 |
19. आसति की समस्याएँ—30 |
92. यथार्थ एवं द्वंद्व की समझ—109 |
20. आवश्यकताओं पर टिके संबंध—31 |
93. रिश्ते—एक दर्पण——110 |
21. ईश्वर—31 |
94. वैश्विक क्रांति—110 |
22. इच्छा—32 |
95. व्यवस्था—111 |
23. कंप्यूटर—34 |
96. विचार—112 |
24. कर्म-व्यवस्था—35 |
97. विचार की प्रक्रिया—115 |
25. कर्म की सार्थकता—35 |
98. विश्वास—117 |
26. क्रांति—35 |
99. वर्तमान—118 |
27. कारण—37 |
100. विशुद्धता—118 |
28. गतिविधि के परिप्रेक्ष्य में संबंध—38 |
101. विशेषज्ञता—119 |
29. गवेषणा—38 |
102. वैश्विक समस्या—119 |
30. गतिविधि और संबंध—39 |
103. शरीर—119 |
31. चेतना—39 |
104. शांति—120 |
32. छवि का अर्थ—41 |
105. शांति की स्थापना का कार्य—121 |
33. जिम्मेदारी का अहसास—42 |
106. शिक्षा का अर्थ—122 |
34. जीवन—42 |
107. शिक्षा का उद्देश्य—124 |
35. जीवन या है?—44 |
108. स्थायी—124 |
36. जीवन और मृत्यु—45 |
109. स्थायित्व—125 |
37. जनसमूह—46 |
110. स्वबोध—126 |
38. जीवन-चक्र—46 |
111. संकल्प—126 |
39. तटस्थता—47 |
112. सच या है?—127 |
40. तुलना—49 |
113. सत्य का ज्ञान—128 |
41. तपस्विता—50 |
114. सद्गुण—129 |
42. दर्पण में संबंध—50 |
115. संक्रांति काल—129 |
43. दु:ख—51 |
116. सत्ता—130 |
44. दु:ख की प्रवृत्ति—56 |
117. संपर्क—130 |
45. दु:ख का अवसान—57 |
118. संबंधों का अवलोकन—131 |
46. दु:ख का मूल कारण—58 |
119. संबंधों का द्वंद्व—131 |
47. द्वंद्व—58 |
120. संबंधों का महव—132 |
48. दृष्टिकोण—59 |
121. संबंधों का स्वरूप—133 |
49. ध्यान—60 |
122. संबंधों की जटिलता—133 |
50. धर्म—61 |
123. संबंधों की समझ : एक समस्या—133 |
51. धारणाएँ—63 |
124. संबंधों में मनमुटाव का कारण—134 |
52. धारणा पर आधारित संबंध—64 |
125. संबंध की समस्या—135 |
53. नदी—64 |
126. समझ की उत्पत्ति—135 |
54. निरीक्षण—65 |
127. समय—136 |
55. निरंतरता—65 |
128. सम्यक् कार्य—140 |
56. निर्भरता पर आधारित संबंध—70 |
129. सम्यक् विचार—141 |
57. नूतन—71 |
130. सम्यक् विचारधारा—141 |
58. प्रकाश की अनुभूति—71 |
131. समस्या—143 |
59. पलायन—72 |
132. समाज—144 |
60. पर्वत—72 |
133. समाज के साथ संबंध—145 |
61. परनिर्भरता—73 |
134. संसार—146 |
62. प्रयास—73 |
135. संस्कारबद्धता—146 |
63. प्रज्ञा—73 |
136. सादगी—146 |
64. प्रज्ञा का आविर्भाव—74 |
137. सुख—147 |
65. प्रतिमा —74 |
138. सीखने का अर्थ—148 |
66. परिपवता—76 |
139. सीखने की ललक—149 |
67. प्रेम—77 |
140. सीमितता—149 |
68. प्रेम या है?—83 |
141. सोच-विचार—149 |
69. प्रेम और दु:ख—83 |
142. ज्ञान—149 |
70. पुनर्जन्म—84 |
143. ज्ञान का अर्थ—150 |
71. पूर्वनियोजन—84 |
राजस्वी
जन्म : 2 जून, 1967 को ग्राम लाँक, जिला शामली, उार प्रदेश में।
शिक्षा : स्नातक (उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद)।
कृतित्व : ‘हरियाणा हैरिटेज’ में संपादन कार्य किया। दिल्ली के कई प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों के लिए वैतनिक एवं स्वतंत्र रूप से संपादन-लेखन कार्य; विभिन्न प्रकाशन संस्थानों से अब तक लगभग 65 पुस्तकें प्रकाशित। देश की सामाजिक समस्याओं पर 10 कहानियाँ एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर अनेक लेख प्रकाशित।