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भगवान् श्रीकृष्ण का पृथ्वीलोक पर अवतरण ऐसे समय में हुआ था, जब यहाँ पर अन्याय, अधर्म और अनीति का प्रसार हो रहा था। आसुरी शक्तियाँ प्रभावी हो रही थीं और संतों, ऋषि-मुनियों के साथ-साथ सामान्य जनों का जीवन दूभर हो गया था; यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी बढ़ते अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठी थी। भगवान् श्रीकृष्ण ने अवतरित होकर न केवल दुष्ट राजाओं, राक्षसों और अधर्म का नाश किया, वरन् संतजनों, प्रिय भक्तों और सामान्य प्रजाजनों का उद्धार किया। महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पूर्व अपने प्रिय भक्त अर्जुन का मोह दूर करने के लिए भगवान् वासुदेव ने उसे मोह और आसक्ति त्यागकर कर्म करने का उपदेश दिया, जो ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के रूप में विख्यात है।
अर्जुन की भाँति भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय भक्तों उद्धव आदि को भी वैराग्य, भक्ति, कर्म, ज्ञान, लोक-परलोक और जीवन के सभी पक्षों का विशद ज्ञान कराया। भगवान् श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए ज्ञान का भंडार अथाह, असीमित और अनंत है, तथापि उस ज्ञान के महासागर में से अंजुलि भर ज्ञान के मोती ही इस पुस्तक में आप तक पहुँचाने का एक प्रयास किया है। कर्म, भक्ति, नैतिकता और जीवन-मूल्यों का व्यावहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तक।
जन्म : 2 जून, 1967 को ग्राम लाँक, जिला शामली, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा : स्नातक (उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद)।
कृतित्व : ‘हरियाणा हैरिटेज’ में संपादन कार्य किया। दिल्ली के कई प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों के लिए वैतनिक एवं स्वतंत्र रूप से संपादन-लेखन कार्य; विभिन्न प्रकाशन संस्थानों से अब तक लगभग 65 पुस्तकें प्रकाशित। देश की सामाजिक समस्याओं पर 10 कहानियाँ एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर अनेक लेख प्रकाशित।