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स्वामी रामतीर्थ एक महान् तत्त्वज्ञानी और धर्मोपदेशक थे। उनका जन्म
2 अक्तूबर, 1873 को पंजाब के गुजराँवाला जिले के मुरारीवाला गाँव में हुआ था। उनके पिता गोसाईं हीरानंद पुरोहिताई करके अपने परिवार की जीविका चलाते थे। गोस्वामी तुलसीदासजी के वंश से उनके परिवार का संबंध था।
रामतीर्थ के दादा गोसाईं रामचंद्र अपने समय के प्रसिद्ध ज्योतिषी थे। रामतीर्थ की कुंडली बनाते समय ही उन्होंने यह बात स्पष्ट कर दी थी कि ‘रामतीर्थ’ बहुत बड़ा विद्वान् तथा धर्म-प्रचारक बनेगा; किंतु बहुत कम आयु तक ही वह इस संसार में रहेगा।
स्वामी रामतीर्थ वास्तव में एक चमत्कारी पुरुष थे। उनका समस्त जीवन अत्यंत विलक्षण तथा प्रेरणादायक था। उन्होंने अद्वैत वेदांत को अत्यंत सरल करके जनमानस के समक्ष इस तरह से रखा कि साधारण बुद्धिवाला मनुष्य भी उससे लाभान्वित हो सके। उन्होंने मनुष्य को त्याग, आत्मविश्वास, कर्म, निष्ठा, निर्भयता, दृढता, एकता और विश्व-प्रेम की व्यावहारिक शिक्षा देकर उन्हें सत्य का मार्ग दिखाया। उनके उपदेश ही नहीं, बल्कि उनका समस्त जीवन ही वेदांतमय व शिक्षाप्रद है। उनका पवित्र हृदय सद्भाव एवं सौमनस्य से प्रदीप्त था।
मानवीय गुणों से साक्षात्कार कराती दिव्यपुरुष स्वामी रामतीर्थ की पावन वाणी और विचार-मंजूषा के रत्न संकलित हैं इस पुस्तक में।
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अनुक्रम
स्वामी रामतीर्थ : एक दिव्य जीवन—5
भूमिका—13
1. राष्ट्र देवो भव—17
2. भारतवर्ष : अतीत, वर्तमान, भविष्य—19
3. वेदांत—29
4. परमात्मा, आत्मा, उपासना—32
5. धर्म—40
6. कर्म—43
7. त्याग-बलिदान—48
8. पे्रम—51
9. आनंद—56
10. स्वतंत्रता—59
11. आत्मविश्वास, संकल्प और सफलता—62
12. सत्य—66
13. एकाग्रता—69
14. विपत्तियाँ और साहस—71
15. विचारों की शति—76
16. प्रगति : परिवर्तन—79
17. संयम : सहयोग : गुण-दर्शन—82
18. शिक्षा—89
19. शति—91
20. विविध—92
21. अवतरण—110
22. कुछ गीत—132
23. स्वामी राम की लेखनी से अंतिम संदेश—135
लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता। सामाजिक, सांस्कृतिक सभा-सम्मेलनों में सक्रियता के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर निरंतर लेखन।