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Main Sangh Mein aur Mujhmein Sangh   

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Author M.G. Vaidya
Features
  • ISBN : 9789352661428
  • Language : Hindi
  • ...more

More Information

  • M.G. Vaidya
  • 9789352661428
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 280
  • Hard Cover

Description

मा.गो.  वैद्य  अथवा  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, परिचय की आवश्यकता से दूर यह ऐसे नाम हैं, जो समाज और मीडिया में सहज ही आकर्षण की, जिज्ञासा की लहर उठाते हैं। ऐसे में इस पुस्तक के अध्यायों से गुजरना आकर्षण की दो सरिताओं में एक साथ डुबकी लगाने जैसा रोमांचक, यादगार अनुभव है।
इस पुस्तक में वैद्य कुल के इतिहास, भूगोल, फैलाव आदि का तो पता चलता ही है, मा.गो. वैद्य के व्यक्तिगत जीवन का भी निकट से परिचय मिलता है। निर्णय के कठिन क्षण और असमंजस से बाहर निकलने की राह...व्यक्ति, संगठन और सोच के समन्वय को सामाजिक परिघटनाओं की सच्ची झाँकियों में पिरोकर पाठक के सामने रखा गया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीज भाव का साक्षात्कार पुस्तक में हर जगह दिता है। ऐसा भाव, जिससे जुड़ने के बाद ‘मैं’, मैं नहीं रहता...व्यक्ति के स्व, उसके परिवार, समाज और राष्ट्र के दायरों को फलाँगती, किंतु साथ ही उनकी एकात्मकता का बोध कराती पुस्तक एक व्यापक दृष्टिकोण और अनुभव का परिचय कराती है। ऐसा दृष्टिकोण, जिसमें समाज से प्राप्त तीखे-मीठे जमीनी अनुभव हैं और हर स्थिति में जिम्मेदारी का भाव भी। वैद्य उपनाम कहाँ  खत्म होता है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहाँ जीवन में व्याप्त होता जाता है, आप पढ़ेंगे तो यह अंतर अनुभव ही नहीं होगा।

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अनुक्रम

1. वैद्य कुल वृंत — Pgs. 7

2. हमारी माँ — Pgs. 32

3. मेरी शिक्षा और मेरे शिक्षक — Pgs. 44

4. विवाह के मेरे अनुभव — Pgs. 62

5. मैं संघ में और मुझमें संघ — Pgs. 84

6. स्मृति से कभी न जानेवाली दो बाँकी घटनाएँ  — Pgs. 103

7. मेरा सेवा सप्तक  — Pgs. 120

8. मेरी र्मूता की कथाएँ — Pgs. 136

9. कारावास के दिन — Pgs. 156

10. हिस्लौप कॉलेज के सत्रह वर्ष — Pgs. 166

11. नागपुर विद्यापीठ में  — Pgs. 183

12. हमारे विदेशी मेहमान — Pgs. 211

13. मेरी बहन : एक हँसता हुआ दु:ख  — Pgs. 221

14. मा.गो. वैद्य के संबंध में  — Pgs. 224

The Author

M.G. Vaidya

मा.गो. वैद्य
जन्म : 11 मार्च, 1923।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले की तरोड़ा तहसील में जन्मे वैद्यजी के बारे में कहा जा सकता है कि जीवन में कुछ भी उन्हें सरलता से नहीं मिला, किंतु जो भी मिला उसे उन्होंने बेहद सहजता से लिया।
नागपुर के मॉरिस कॉलेज से महाविद्यालयी शिक्षा (बी.ए. व एम.ए.) पूरी की और शिक्षणकर्म से जुड़ गए।
संस्कृत के ख्यात शिक्षक जो अनूठी शिक्षण शैली और विषय पर पकड़ के कारण न केवल छात्रों, अपितु विरोधी विचारधारा के लोगों में भी लोकप्रिय रहे। वर्ष 1966 में संघ-संकेत पर नौकरी छोड़ दैनिक तरुण भारत, नागपुर से जुड़े। समाचार चयन की तीक्ष्णदृष्टि और गहरी वैचारिक स्पष्टता के कारण इस क्षेत्र में भी प्रतिभा को प्रमाणिक किया। कालांतर में इसका प्रकाशन करनेवाले नरकेसरी प्रकाशन का नेतृत्व किया।
आगे चलकर पत्रकारिता से राजनीति में जाने का संयोग बना। 1978 से 1984 तक महाराष्ट्र विधान परिषद् में मनोनीत किए गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय अधिकारी के रूप में बौद्धिक, प्रचार और प्रवक्ता के रूप में दायित्वों का निर्वहन करनेवाले मा.गो. वैद्य संघ शोधकों, सत्यशोधकों और विरोधी विचारधाराओं के जिज्ञासा समाधान के लिए इस आयु में भी तत्पर और उपलब्ध।

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