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भारतीय नवजागरण में अनेक लोगों ने अपने-अपने स्तर पर श्रेष्ठ योगदान दिया। ऐसे ही अनन्य महापुरुषों की पंक्ति में एक नाम रवींद्रनाथ टैगोर का भी है। यह संभवतः एक विलक्षण व महत्त्वपूर्ण नाम है, क्योंकि इसी व्यक्ति ने भारतीय, विशेषकर बँगला साहित्य को विश्व के सामने प्रस्तुत किया। उनके अद्भुत लेखन तथा कल्पना-शक्ति ने ही उन्हें ‘विश्व पुरुष’ के रूप में पहचान दी। वे भारतीय संस्कृति एवं शिक्षा-पद्धति के पर्याय पुरुष माने जाते हैं। उन्होंने स्वतंत्रता पूर्व भारत में शिक्षा और साहित्य का गौरव बढ़ाया। उनका नाम विश्व साहित्य में एक अलग पहचान रखता है, क्योंकि वे भारतीय साहित्य-जगत् तथा एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता थे, जो उन्हें उनके कालजयी काव्य ‘गीतांजलि’ के लिए दिया गया।
उल्लेखनीय है कि उन्होंने भारत के राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ के साथ-साथ बांग्लादेश के राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ की रचना भी की। इसलिए विश्व में उन्हें ‘कविगुरु’ और ‘गुरुदेव’ जैसे आदरणीय उपनामों से संबोधित किया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के नाना विषयों पर प्रकट विचारों और उनकी सोच को वर्णित किया गया है। टैगोर को संपूर्ण रूप में जानने-समझने में सहायक एक उपयोगी पुस्तक।
जन्म : 23 जनवरी, 1955 को मैनपुरी (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी., साहित्यालंकार।
विगत 30 वर्षों से हिंदी पत्रकारिता से संबद्ध। दिल्ली प्रेस गु्रप ऑफ मैग्जीन्स और विश्व बुक्स के संपादकीय विभाग में विभागीय लेखक, उपसंपादक और सहायक संपादक के पदों पर कार्य। हिंदी दैनिकों—हिमालय दर्पण, कुबेर टाइम्स और स्वतंत्र वार्त्ता में फीचर संपादक, पत्रिका प्रमुख और सहायक संपादक के रूप में कार्य।
प्रकाशन : पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत।