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हिंदी साहित्य के व्यंग्य लेखन की विधा मुझे प्रारंभ से ही बड़ी लुभाती रही। करीब-करीब सारे व्यंग्य लेखकों को पढ़ने और उनसे सीखने का सौभाग्य मिला। व्यंग्य लेखन में गंभीर विषयों पर चुटीले अंदाज में प्रतीकात्मक और परोक्ष रूप से अपनी बातें रखकर सरल तरीके से पाठकों तक पहुँचाया जाता है। अपनी रचनाओं में लेखकों का यह कतई उद्देश्य नहीं होता कि किसी की भावना को ठेस पहुँचाई जाए अथवा नकारात्मक बातों को प्रेषित किया जाए। मैंने भी व्यंग्य लेखन के क्रम में ईमानदारी से इस मर्यादा को पालन करने का प्रयास किया है। लेखन का एकमात्र उद्देश्य यह है कि नकारात्मकता को भी सकारात्मकता के साथ प्रस्तुत कर समाज को सजग और सचेत किया जाए। इन्हीं शुद्ध भावों के साथ अपनी इक्यावन रचनाओं के संकलन के साथ आपके समक्ष सेवाभाव से उपस्थित हूँ।
पुलिस सेवा में रहने के कारण समाज को, व्यक्तियों, परिस्थितियों, घटनाओं, शासन की व्यवस्थाओं को काफी निकट से देखने-समझने का अनुभव और सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिन-जिन तथ्यों एवं परिस्थितियों ने मुझे संवेदित किया, उन्हें अपनी रचनाओं में विभिन्न प्रकार से समायोजित करने का प्रयास मैंने किया है। इस पुस्तक के माध्यम से आप पाठक ही यह निर्णय कर पाएँगे कि मैं इसमें कितना सफल हुआ।
—प्रशांत करण
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अनुक्रम
हिंदी व्यंग्य का नया सोपान —Pgs. 5
भूमिका —Pgs. 9
शंसा —Pgs. 11
प्रस्तावना —Pgs. 13
1.धर्म का प्रवचन —Pgs. 21
2.समाज-सेवा और आत्म-कल्याण —Pgs. 25
3.अंतरराष्ट्रीय होना —Pgs. 29
4.मामला खुदरे का —Pgs. 33
5.स्वप्न की सभा —Pgs. 37
6.इच्छाशक्ति —Pgs. 42
7.किसानी —Pgs. 45
8.योग दिवस —Pgs. 49
9.जन्म-मृत्यु —Pgs. 52
10.सफर —Pgs. 57
11.आस्तीन —Pgs. 61
12.बर्थ डे —Pgs. 64
13.मंचीय कविता और गंभीर साहित्य —Pgs. 67
14.बहस जड़ और जड़ता पर —Pgs. 70
15.बेदखल —Pgs. 75
16.प्रजातंत्र —Pgs. 80
17.आज के समय में साहित्यकारों का दायित्व —Pgs. 84
18.भूख से मौत —Pgs. 87
19.शिक्षा, समाज और साहित्य—प्रतिक्रियात्मक व्यवस्थाएँ —Pgs. 90
20.क्रोध का परिणाम —Pgs. 93
21.विकास के मापदंड —Pgs. 96
22.इदम् न मम —Pgs. 99
23.गुणी गुणं वेत्ति —Pgs. 102
24.वर्तमान साहित्य में नवोदितों का स्थान —Pgs. 106
25.अंतर्द्वंद्व —Pgs. 109
26.बापू के बंदर —Pgs. 112
27.दिवाकर बापू की जै —Pgs. 116
28.चुनावी वैकेंसी में आजमाइए किस्मत —Pgs. 119
29.नारी पीड़ा हुई मुखरित —Pgs. 123
30.आखिरी मोड़ —Pgs. 126
31.क्या कहती है धरा —Pgs. 129
32.एहसास है क्या? —Pgs. 133
33.स्मरणीय रेल यात्रा —Pgs. 136
34.बहस ‘योग दिवस’ के बाद की —Pgs. 139
35.आँखिन देखी —Pgs. 143
36.गुरु दक्षिणा —Pgs. 147
37.भूख —Pgs. 150
38.आजादी के वे सोलह वर्ष —Pgs. 153
39.उजाले-अँधेरे —Pgs. 156
40.पैर की जूती —Pgs. 160
41.हिंदी दिवस —Pgs. 163
42.सावन की बिदाई —Pgs. 166
43.घबरालजी और गांधीवाद —Pgs. 169
44.भविष्य —Pgs. 171
45.जयंतियाँ और साहित्यकार का दायित्व —Pgs. 173
46.अथ सड़क कथा —Pgs. 176
47.सेंध —Pgs. 180
48.परदेस जाके परदेसिया —Pgs. 183
49.निःशब्द कर गए —Pgs. 185
50.आता है वसंत का महीना —Pgs. 188
51.शांत हवा —Pgs. 190
प्रशांत करण, IPS
जन्म : 6 जून, 1956, मुजफ्फरपुर (बिहार)।
शिक्षा : स्नातक (वनस्पति विज्ञान प्रतिष्ठा) (स्वर्ण पदक), CAIIB, PGCBM (XLRI, जमशेदपुर)। झारखंड पुलिस पदक (दो बार), राष्ट्रपति पुलिस पदक (दो बार)।
प्रकाशन : ‘मत बाँध यहाँ अब तू मुझको’ (काव्य-संग्रह) एवं आकाशवाणी तथा दूरदर्शन केंद्र, राँची से लगातार कविता-पाठ।
सम्मान : संगम मणि सम्मान, प्रतिभा सम्मान, रचना प्रतिभा सम्मान, रजत रचना प्रतिभा सम्मान, स्वर्ण रचना प्रतिभा सम्मान, शतकवीर सम्मान, लाल बहादुर शास्त्री साहित्य रत्न सम्मान, कलमजीवी सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मान।
इ-मेल : prashant.k.karan@gmail.com
Twitter- http://prashantkaran.tumbler.com, http://prashant karansatire.wordpress.com