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“पिता का घर, आप बड़े लोगों में यह होता होगा। मैं तो निर्धन पिता की चौथी बेटी हूँ। हम निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार की लड़कियों के माँ-बाप अपनी पुत्रियों की शादी और श्राद्ध एक साथ ही कर देते हैं। जन्म से ही सुनती आई हूँ, ‘पिता के घर से डोली पर चढ़ के जाना तो पति के घर से अरथी पर ही निकलना।’ ससुराल छोड़कर आई पुत्री के लिए वे पलक-पाँवड़े बिछाकर थोड़े ही रखते हैं।”
“पर, करीब-से-करीब संबंध में भी आपस में इतनी दूरी या जगह जरूर होनी चाहिए कि धूप-हवा आए-जाए, इससे संबंध स्वस्थ होता है, संबंधों की कोमलता और ताजगी हमेशा बनी रहती है। और औरत में तो दूसरे द्वार का आकर्षण जन्म से होता है।”
“आज तक मुझे लगता था, कर्ज के रूप में ही सही, मेरा पति मुझसे दूर होते हुए भी मेरे साथ है। यही तो एक आखिरी लगाव था मेरा उसके साथ, आज तो वह कर्ज भी खत्म हो गया। आप ही बताइए दीदी, अब मैं किसके लिए जीऊँ? इस धरती पर अब मेरी जरूरत ही क्या है?”
—इसी संग्रह से
विविधता से लबरेज प्रस्तुत कहानी-संग्रह की कहानियों में व्यक्ति व समाज के विविध रंग और छवियाँ सहेजी गई हैं। सभी कहानियों के अपने विविध अर्थ, मर्म एवं सरोकार हैं। आधुनिक सामाजिक व पारिवारिक जीवन-शैली की विसंगतियों को यक्ष-प्रश्न जैसा अर्थ-विस्तार मन के तारों को झंकृत कर देता है। ये कहानियाँ संस्मरण, रेखाचित्र व कहानी का मिला-जुला अनूठा आनंद प्रदान करती हैं। एक उत्कृष्ट कथा-कृति।
जन्म : 1 अगस्त, 1964।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी),पी-एच.डी.।
प्रकाशन : ‘नेपथ्य की जिंदगी’, ‘दहलीज के उस पार’, ‘कुछ पल अपने’, ‘मन न भए दस-बीस’ (कहानी संग्रह); ‘मैं बोन्साई नहीं’, ‘लहर लौट आई’ (उपन्यास); ‘नई कविता के मिथक काव्य’ (आलोचना); ‘प्रसाद स्मृति वातायन’ (संपादन)।
विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं आलेख प्रकाशित; रेडियो एवं दूरदर्शन से कहानी, वार्त्ता एवं नाटकों का प्रसारण।
पुरस्कार-सम्मान : ‘सर्जना पुरस्कार’, ‘शिंगलू स्मृति पुरस्कार’ (उ.प्र. हिंदी संस्थान), ‘हिंदी प्रभा सम्मान’ (उ.प्र. महिला मंच), ‘पहरुआ सम्मान’ (डॉ. शंभूनाथ फाउंडेशन), भाऊराव देवरस सेवा-न्यास का ‘युवा साहित्यकार सम्मान’।